सीमा कुमारी
सनातन हिन्दू धर्म में ‘एकादशी व्रत’ को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना जाता है। आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष में दशहरे के बाद पड़ने वाली एकादशी को ‘पापांकुशा एकादशी’ कहा जाता है।इस बार ‘पापकुंशा एकादशी’ का व्रत 16 अक्टूबर,अगले शनिवार को है। इस व्रत में भगवान पद्मनाभ की पूजा (Padamnabh Puja) की जाती है। जो भी श्रद्धालु इस व्रत को निश्छल मन करता है, उसे तप के समान फल की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि इस दिन मौन रह कर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। यही नहीं, भगवान विष्णु की विधिवत तरीके से पूजा करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आइए जानें ‘पापकुंशा एकादशी’ पारण मुहूर्त, महत्व और पूजन की विधि –
शुभ-मुहूर्त और पारण का समय-
इस बार अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत 16 अक्टूबर 2021 दिन शनिवार को किया जाएगा।
आश्विन मास शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि आरंभ- 15 अक्टूबर 2021 दिन शुक्रवार को शाम 06 बजकर 02 मिनट से
अश्वनि मास शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि समाप्त-
16 अक्टूबर 2021 दिन शनिवार को शाम 05 बजकर 37 मिनट पर
पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्ति समय-
17 अक्टूबर 2021 दिन रविवार को शाम 05 बजकर 39 मिनट पर
एकादशी व्रत पारण का समय-
प्रातः 06 बजकर 23 मिनट से 08 बजकर 40 मिनट
पूजा-विधि
मान्यताओ के मुताबिक, इस दिन प्रातः उठकर स्नानादि करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्प लें। कलश स्थापना करके उसके पास में आसन पर भगवान विष्णु की तस्वीर स्थापित करें।
अब धूप-दीप और फल, फूल आदि से भगवान विष्णु का विधिपूर्वक पूजन करें। एकादशी व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी तिथि को किया जाता है।
द्वादशी तिथि को प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करने के पश्चात पूजन करें।
अब सात्विक भोजन बनाकर किसी ब्राह्मण को करवाएं और दान दक्षिणा देकर उन्हें विदा करें।
इसके बाद शुभ मुहूर्त में आप भी व्रत का पारण करें।
‘पापांकुशा एकादाशी’ का महत्व
पुराणों के मुताबिक, इस एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार, इस दिन मौन रहकर भगवद् स्मरण करना चाहिए। इसके साथ ही भजन-कीर्तन करने का भी विशेष विधान है। कहा जाता है कि, ‘पापाकुंशा एकादशी’ पर भगवान श्री हरि विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप को पूजा जाता है। माना जाता है कि इस व्रत के दौरान भगवान विष्णु की उपासना करने से मन पवित्र हो जाता है। इसके साथ ही आपने कई सद्गुणों का समावेश होता है। धार्मिक मान्यताओं की मानें, तो इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को कठिन तपस्या के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है।