जानें शरद पूर्णिमा के दिन खीर बनाने और खाने का महत्व, आसमान से होती है अमृत-वर्षा

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    -सीमा कुमारी

    इस साल ‘शरद पूर्णिमा’ 19 अक्टूबर अगले मंगलवार को है। इस पूर्णिमा को कोजागरी और राज पूर्णिमा भी कहते है। ज्योतिषियों के मुताबिक, साल में से सिर्फ शरद पूर्णिमा के ही दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। मान्यता है कि इस दिन आसमान से अमृत की वर्षा होती है,इस दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है। ज्योतिष बताते हैं कि इस दिन से सर्दियों की शुरुआत हो जाती है।  शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा धरती के सबसे  निकट होता है। पूर्णिमा की रात चंद्रमा की दूधिया रोशनी धरती को नहलाती है, और इसी दूधिया रोशनी के बीच पूर्णिमा का पावन पर्व भी मनाया जाता है।

    आइए जानें शरद पूर्णिमा के दिन क्यों बनता है ‘खीर’?

    शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखी जाती है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण होते हैं। कहते हैं कि दूध में भरपूर मात्रा में लैक्टिक एसिड पाया जाता है। यह चांद की तेज रोशनी में दूध में पहले से मौजूद बैक्टिरिया को और बढ़ाने में सहायक होता है। वहीं, खीर में पड़े चावल इस काम को और आसान बना देते हैं। चावल में पाए जाने वाला स्टार्च इसमें मदद करता है। इसके साथ ही, कहते हैं कि चांदी के बर्तन में रोग-प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होती है। इसलिए हो सके तो खीर को चांदी के बर्तन में रखना चाहिए।

    माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चांद की रोशनी सबसे तेज होती है। इन्हीं सब कारणों की वजह से शरद पूर्णिमा की रात बाहर खुले आसमान में खीर रखना फायदेमंद बताया जाता है।

    शरद पूर्णिमा का महत्‍व

    पौराणिक मान्‍यताओं में ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही  ‘मां लक्ष्‍मी’ की उत्‍पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। इस तिथि को धनदायक माना जाता है और मान्‍यता है कि इस दिन मां लक्ष्‍मी पृथ्‍वी पर विचरण करने आती हैं और जो लोग रात में भजन कीर्तन करते हुए मां लक्ष्‍मी का आह्वान करते  हैं धन की देवी उनके घर में वास करती हैं। शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की चांदनी से पूरी धरती   सराबोर रहती है और अमृत की बरसात होती है। इन्‍हीं मान्‍यताओं के आधार पर ऐसी परंपरा बनाई गई है कि रात को चंद्रमा की चांदनी में खीर रखने से उसमें अमृत समा जाता है।