Pradosh Vrat
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    -सीमा कुमारी

    इस वर्ष अश्विन माह का दूसरा प्रदोष व्रत 23 सितंबर शुक्रवार को है। इस दिन शुक्रवार होने के कारण इसे ‘शुक्र प्रदोष व्रत’ (Shukra Pradosh Vrat) कहा जाएगा। इस दिन व्रत रखकर भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की जाती है। शुक्र प्रदोष व्रत के बारे में मान्यता है कि यह जीवन में सुख-समृद्धि को बढ़ाने वाला होता है। इस व्रत के दौरान प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से धन-दौलत, ऐश्वर्य, वैभव और भौतिक सुख संसाधनों की पूर्ति होती है। आइए जानें शुक्र प्रदोष व्रत कब रखा जाएगा और पूजा का शुभ मुहू्र्त और महत्व क्या है?

    तिथि

    हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 23 सितंबर दिन शुक्रवार को रात में 01 बजकर 17 मिनट पर हो रहा है और इस तिथि का समापन अगले दिन 24 सितंबर शनिवार को रात में 02 बजकर 30 मिनट पर होगा। उदयातिथि और प्रदोष पूजा मुहूर्त के आधार पर शुक्र प्रदोष व्रत 23 सितंबर को रखा जाएगा।

    पूजा मुहूर्त

    23 सितंबर को शुक्र प्रदोष की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 06 बजकर 17 मिनट से रात 08 बजकर 39 मिनट तक है। ऐसे में जो लोग प्रदोष व्रत रखेंगे, उनको शिव पूजा के लिए 02 घंटे से अधिक का समय प्राप्त होगा। प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष मुहूर्त में ही करने का महत्व है।

    प्रदोष व्रत वाले दिन प्रदोष काल का समय शुभ माना जाता है। इस दौरान की गईं सभी प्रकार प्रार्थनाएं और पूजा सफल मानी जाती हैं। सूर्यास्त से एक घंटे पहले, भक्त स्नान करते हैं और पूजा के लिए तैयार हो जाते हैं।

    महत्व  

    हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का बड़ा महत्व हैं। ज्योतिष -शास्त्र के अनुसार, प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ प्रसन्नचित मनोदशा में होते हैं। इस अवधि में महादेव का अभिषेक करने से जातक की पूजा पूर्ण रूप से सफल होती है और सभी मनोरथ पूरे होते हैं। सप्ताह में दिन के अनुसार प्रदोष व्रत का फल मिलता हैं।

    शुक्रवार को प्रदोष होने से शुक्र प्रदोष का संयोग बनता हैं। इस दिन व्रत रख शंकर-पार्वती की पूजा से सौभाग्य में वृद्धि और दांपत्य जीवन में खुशहाली आती हैं। ‘शुक्र प्रदोष व्रत’ भौतिक सुख प्रदान करने वाला माना गया  हैं।

    प्रदोष व्रत के प्रभाव से मनुष्य हर कार्य में सफलता प्राप्त करता हैं। अपने नाम स्वरूप प्रदोष व्रत व्यक्ति को समस्त दोषों से छुटाकार दिलाता है। कहते हैं, कैलाश पर्वत पर भोलेनाथ इस काल में डमरू बजाकर नृत्य करते हैं।