Dev Uthani Ekadashi 2022
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    -सीमा कुमारी

    मां लक्ष्मी की साधना-आराधना का पर्व ‘दीपावली’ (Deepawali)। इसे अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व माना जाता है। मान्यताओं के मुताबिक, दीपावली के पर्व पर माता लक्ष्मी की

    पूजा-अर्चना करने से पूरे साल भर जातक की आर्थिक स्थिति मजबूती बनी रहती है। माता लक्ष्मी की असीम कृपा से जातक का धन का भंडार सदा भरा रहता है और सभी प्रकार के सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

    दीपवली के दिन ही ऋद्धि-सिद्धि के दाता और प्रथम पूजनीय कहे जाने वाले भगवान गणपति की भी विशेष रूप से साधना होती है, जिनकी कृपा से पूरे साल जीवन में सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं। ऐसे में हर कोई शुभ एवं लाभ की प्राप्ति के लिए माता लक्ष्मी के साथ विशेष रूप से गणपति का विधि-विधान से पूजा करता है।

    दीपावली के पावन पर्व पर भगवान गणेश और मां लक्ष्मी के अलावा धन के देवता कुबेर, माता काली और मां सरस्वती की पूजा का भी विशेष विधान है। लेकिन, इन सभी के लिए की जाने वाली विशेष पूजा के साथ भगवान विष्णु की पूजा क्यों नहीं की जाती है ? यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है, जो अक्सर लोगों के मन में आता है, कि भगवान विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी को लोग पूरे विधि-विधान से पूजते हैं। चलिए जानें आखिर दिवाली की रात भगवान विष्णु के बगैर क्यों पूजी जाती हैं ‘माता लक्ष्मी’।

    मान्यताओं के मुताबिक, दिवाली के दिन मां लक्ष्मी के साथ कई देवी-देवताओं की भी पूजा की जाती है, लेकिन उस रात को जगत के पालनहार भगवान श्री हरि, यानी भगवान विष्णु को नहीं पूजा जाता। इसका प्रमुख कारण ये है कि, दिवाली का पर्व चातुर्मास के बीच पड़ता है। और, भगवान विष्णु इन दिनों योगनिद्रा में लीन रहते हैं।

    ऐसे में किसी धार्मिक कार्य में उनकी अनुपस्थिति स्वभाविक है। इसलिए दिवाली में मां लक्ष्मी भगवान श्री हरि के बिना लोगों के घर पधारती हैं। दिवाली के बाद भगवान विष्णु कार्तिक पूर्णिमा के दिन योगनिद्रा से जागते हैं। उस समय सभी देवता श्रीहरि के साथ मां लक्ष्मी का विशेष पूजन करके दिवाली का पर्व मनाते हैं, जिसे ‘देव दीपावली’ (Dev Deepawali) कहा जाता है।