‘नवरात्रि’ के दूसरे दिन पूजी जाती हैं ‘मां ब्रह्मचारिणी’, जानिए कैसे करें पूजा-अर्चना और जानें आरती-कथा

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    सीमा कुमारी

    आज ‘नवरात्रि’ का दूसरा दिन हैं।’मां दुर्गा’के द्वितीय स्वरूप ‘मां ब्रह्मचारिणी’ को समर्पित यह दिन हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन मां के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। ‘मां ब्रह्मचारिणी’ की पूजा करने से व्यक्ति को अपने कार्य में सदैव विजय प्राप्त होता है। ‘मां ब्रह्मचारिणी’ दुष्टों को सन्मार्ग दिखाने वाली हैं। माता की भक्ति से व्यक्ति में तप की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य जैसे गुणों में वृद्धि होती है। आइए जानें नवरात्रि के दूसरे दिन कैसे करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, पढ़ें आरती,  

     ऐसा है ‘मां ब्रह्मचारिणी’ का स्वरूप

    ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता हैं। इनका स्वरूप श्वेत वस्त्र में लिप्टी हुई कन्या के रूप में है, जिनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल है। यह अक्षयमाला और कमंडल धारिणी ब्रह्मचारिणी नामक दुर्गा शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त है। अपने भक्तों को यह अपनी सर्वज्ञ संपन्न विद्या देकर विजयी बनाती हैं। ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है। अन्य देवियों की तुलना में वह अतिसौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाली देवी हैं।

     पूजन-विधि

    इस दिन सुबह उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं। फिर स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मंदिर में आसन पर बैठ जाएं। फिर मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें और उन्हें फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पित करें। मां को दूध, दही, घृत, मधु व शर्करा से स्नान कराएं। साथ ही भोग भी लगाएं। कई जगह कहा जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी को पिस्ते की मिठाई बेहद पसंद है तो उन्हें इसी का भोग लगाएं। फिर उन्हें पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें। मंत्रों का जाप करें। गाय के गोबर के उपले जलाएं और उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा अर्पित करें। साथ ही इस मंत्र का जाप करें- ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारिण्‍यै नम:।।

     मां ब्रह्मचारिणी का भोग

    कई जगह कहा जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी को पिस्ते की मिठाई बेहद पसंद है तो उन्हें इसी का भोग लगाएं। वहीं, मां को गुड़हल और कमल का फूल बेहद पसंद है। ऐसे में पूजा के दौरान इनसे बनी फूलों की माला को मां के चरणों में अर्पित करें। वहीं, कई जगह यह भी कहा जाता है कि मां को चीनी, मिश्री और पंचामृत बेहद पसंद है, तो मां को इसका भोग लगाएं। ऐसा करने से मां प्रसन्न हो जाती हैं।

     मां ब्रह्मचारिणी की कथा

    जब मां ब्रह्मचारिणी देवी ने हिमालय के घर जन्म लिया था, तब नारदजी ने उन्हें उपदेश दिया था और उसके बाद से ही वो शिवजी को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थीं जिसके लिए उन्होंने घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। देवी ने तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए थे। वे हर दुख सहकर भी शंकर जी की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। फिर कई हजार वर्षों तक उन्होंने निर्जल व निराहार रहकर तपस्या की। जब उन्होंने पत्तों को खाना छोड़ा तो उनका नाम अपर्णा पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीर्ण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताकर सराहना की। उन्होंने कहा कि हे देवी आपकी तपस्या जरूर सफल होगी। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। मां की आराधना करने वाले व्यक्ति का कठिन संघर्षों के समय में भी मन विचलित नहीं होता है।

     

     मां ब्रह्मचारिणी की आरती:-

    जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।

    जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।

    ब्रह्मा जी के मन भाती हो।

    ज्ञान सभी को सिखलाती हो।

    ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।

    जिसको जपे सकल संसारा।

    जय गायत्री वेद की माता।

    जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।

    कमी कोई रहने न पाए।

    कोई भी दुख सहने न पाए।

    उसकी विरति रहे ठिकाने।

    जो तेरी महिमा को जाने।

    रुद्राक्ष की माला ले कर।

    जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।

    आलस छोड़ करे गुणगाना।

    मां तुम उसको सुख पहुंचाना।

    ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।

    पूर्ण करो सब मेरे काम।

    भक्त तेरे चरणों का पुजारी।

    रखना लाज मेरी महतारी।