नवरात्रि के सातवें दिन होगी माता कालरात्रि की पूजा, अवश्य चढ़ाएं ‘यह’ फूल, इन मंत्रों का करें पाठ

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सीमा कुमारी

नवभारत डिजिटल टीम: 21 अक्टूबर, दिन शनिवार को ‘शारदीय नवरात्रि’ (Shardiya Navratri 2023) का सातवां दिन हैं। कालरात्रि माता (Maa Kalratri ) को देवी दुर्गा के नौ रूपों में से सातवां स्वरूप कहा गया है। नवरात्र के सातवें दिन माता के इसी स्वरूप को ध्यान में रखकर इनकी पूजा की जाती है। देवी का यह नाम उनके स्वरूप के कारण से है। इस स्वरूप में माता का वर्ण काजल के समान काला है।

कथा है कि शुंभ-निशुंभ और उसकी सेना को देखकर देवी को भयंकर क्रोध आया और इनका वर्ण श्यामल हो गया। इसी श्यामल स्वरूप से देवी कालरात्रि का प्राकट्य हुआ। मान्यता है कि मां दुर्गा ने कालरात्रि का अवतार बुराई का नाश करने हेतु लिया था। यह अवतार धारण कर उन्होने शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज जैसे दानवों का वध किया था।

मां दुर्गा के इस रूप को सबसे शक्तिशाली माना गया है। माता कालरात्रि का रंग घने अंधेरे के भांति काला है और केश लंबे, खुले और बिखरे हैं। मां कालरात्रि अवतार का पूजा करने से भक्तों को जीवन में समृद्धि, आर्थिक उन्नति, व्यापार में लाभ, कर्ज मुक्ति और सिद्धि की प्राप्ति होती है साथ ही देवी समस्त नकारात्मक शक्तियों से व्यक्ति की सुरक्षा करती हैं। आइए जानें माता कालरात्रि का स्वरूप, पूजा विधि और ,मंत्र।

शास्त्रों के अनुसार, माता कालरात्रि के तीन नेत्र और चार भुजाएं हैं। प्रत्येक हाथों में मां ने वरद मुर्दा, अभयमुद्रा, लोहे के धातु से बना कांटा, और तलवार धारण किया है। मां गधे पर सवार होकर अपने भक्तों की प्रार्थना सुनने आती हैं। माता को गहरा नीला रंग सर्वाधिक प्रिय है।

पूजा विधि

नवरात्र महापर्व के सप्तमी तिथि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-ध्यान करें और पूजा स्थल की अच्छे से सफाई करें। इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से सिक्त करें। फिर मां को फूल, सिंदूर, कुमकुम, रोली, अक्षत इत्यादि अर्पित करें। माता कालरात्रि को नींबू से बनी माला अर्पित करें और गुड़ से बनें पकवान का भोग लगाएं। इसके बाद घी का दीपक जलाएं और मंत्रों का जाप करें। फिर मां कालरात्रि की आरती उतारें। आरती से पहले दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ करना बिलकुल ना भूलें। आरती के बाद माता से अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा प्रार्थना करें।

 

करें इस मंत्र का जाप

या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।

स्तोत्र मंत्र का करें जाप

हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती । कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता ।।

कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी । कुमतिघन्कुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी ।।

क्लीं हिं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी । कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा ।।