-सीमा कुमारी
आज चैत्र माह का दूसरा गुरू प्रदोष व्रत है। इस दिन गुरुवार होने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाएगा। भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए भक्त उनके प्रिय व्रत प्रदोष व्रत रखते है। इस व्रत से भगवान शिव जल्द प्रसन्न होकर भक्तों पर कृपा बरसाते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते है। आइए जानिए ‘गुरू प्रदोष व्रत’ का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मंत्र।
शुभ-मुहूर्त
- त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 14 अप्रैल, गुरुवार को सुबह 4 बजकर 49 मिनट से शुरू
- त्रयोदशी तिथि समाप्त: 15 अप्रैल, शुक्रवार को सुबह 3 बजकर 55 मिनट में समाप्त
- प्रदोष पूजा मुहूर्त: 14 अप्रैल शाम 6 बजकर 46 मिनट से रात 09:00 बजे तक
पूजन-विधि
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान-ध्यान करके भगवान शिव के सामने प्रदोष व्रत का संकल्प लें। इसके बाद विधि-विधान से शिव पूजन और अर्चना करें। शाम के समय प्रदोष काल में एक बार फिर स्नान-ध्यान के बाद विधि-विधान से शिव का विशेष पूजन किया जाता है। प्रदोष व्रत की कथा का श्रवण करें। इस दिन रुद्राक्ष की माला से ‘शिव मंत्र’ का ज्यादा-से-ज्यादा बार जाप करें।
महिमा
मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से व्रती को उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करने से हर कष्ट से छुटकारा मिलने के साथ सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान शिव के मंत्रों का जाप करने से अकाल मृत्यु से भी बचाव होता है।