अबकी साल इस दिन मनेगी ‘होली’, जानिए सही तिथि, ‘होलिका दहन’ का मुहूर्त और इससे जुड़ी पौराणिक कथा

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सीमा कुमारी-

सनातन धर्म में रंगों का त्योहार ‘होली’ (Holi) का बड़ा महत्व है। हर साल फाल्गुन महीने की पूर्णिमा तिथि को ‘होली’ का पर्व बड़े ही धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस बार होली 8 मार्च, बुधवार को मनाई जाएगी। साथ ही होली से 8 दिन पहले ‘होलाष्टक’ लग जाता है। इस बार ‘होलाष्टक’ 28 फरवरी 2023, मंगलवार से लग रहे हैं। और, 6 मार्च 2023 मंगलवार को ‘होलिका दहन’ होगी।

धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ इस महापर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण को होली का पर्व सर्वाधिक प्रिय था। यही कारण है कि ब्रज में होली को महोत्सव के रूप में 40 दिनों तक मनाया जाता है। बसंत पंचमी से इस उत्सव का शुभारंभ हो जाता है। पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन होली का पर्व मनाया जाता है। आइए जानें इस साल किस दिन मनाया जाएगी होली और किस दिन की की जाएगी होलिका दहन।

तिथि और शुभ मुहूर्त

फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि प्रारंभ:

6 मार्च 2023, दोपहर 2 बजकर 47 मिनट से

पूर्णिमा तिथि समाप्त:

7 मार्च 2023, शाम 4 बजकर 39 मिनट पर

होलिका दहन तिथि:

6  मार्च 2023

रंग वाली होली:

7 मार्च 2023, मंगलवार 

ब्रह्म मुहूर्त:

सुबह 4:37 से सुबह 5:23 तक

अभिजित मुहूर्त:

सुबह 11:56 मिनट से दोपहर 12:46 मिनट तक

महत्व

फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करते हुए होलिका दहन किया जाता है। कथा के अनुसार, असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान  

विष्णु का परम भक्त था, लेकिन यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। बालक प्रहलाद को भगवान की भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती। भक्तराज प्रहलाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गई। लेकिन प्रहलाद की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा के फलस्वरूप खुद होलिका ही आग में जल गई। अग्नि में प्रहलाद के शरीर को कोई नुकसान नहीं हुआ। तब से होली के पहले दिन होलिका दहन किया जाता है।

देश के हर हिस्से में होली का त्योहार अलग तरीके से मनाया जाता है। मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में होली के पांचवें दिन रंगपंचमी मनाई जाती है, जो मुख्य होली से भी अधिक जोर शोर से खेली जाती है। ब्रज क्षेत्र में होली को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। वहीं, बरसाना में लठमार होली खेली जाती है। मथुरा और वृंदावन में भी 15 दिनों तक होली की धूम रहती है। हरियाणा में होली पर भाभी द्वारा देवर को सताने की परंपरा होती है। महाराष्ट्र में रंग पंचमी के दिन सूखे गुलाल से होली खेलने की परंपरा है।  दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है। छत्तीसगढ़ में लोक-गीतों का बहुत प्रचलन है और मालवांचल में होली को भगोरिया के नाम से जाना जाता  है।