आज है ‘बैसाखी’, जानिए इसकी परंपरा और सांस्कृतिक महत्व

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    -सीमा कुमारी

    सिख समुदाय का प्रमुख त्यौहार बैसाखी’ (Baisakhi) हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। यह केवल एक जश्न और खुशियों से भरा त्यौहार नहीं है, बल्कि एक धार्मिक उत्सव है, जब दुनिया भर में मौजूद सिख समुदाय खालसा पंथ की स्थापना करने वाले महान गुरु को याद करते हैं।

    पारंपरिक रूप से बैसाखी का पर्व फसल के पकने तथा किसानों के लिए उल्लास और खुशी का संकेत देता है। बैसाखी विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में भव्य तरीके से मनाया जाता है, जहां चटक रंगों, अच्छे पकवान, संगीत और नृत्य द्वारा अपनी खुशी को प्रकट करते हैं।

    इस वर्ष यह  त्यौहार 14 अप्रैल को मनाया जाएगा। यह त्योहार पूरे भारत में विभिन्न नामों से मनाया जाता है। असम  में इसे ‘रोंगाली बिहू’, बंगाल में ‘नोबो बोरशो’, तमिलनाडु में ‘पुथंडु’, केरल में ‘पूरम विशु’ और बिहार में ‘वैशाखा’ के नाम से जाना जाता है। आइए जानें इस त्योहार का शुभ मुहूर्त और महत्व-

    शुभ मुहूर्त

    पंचांग के अनुसार, बैसाखी के दिन आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। पूर्णिमा में विशाखा नक्षत्र होने के कारण ही इस माह को बैसाखी कहते हैं। अन्य शब्दों में कहें तो, वैशाख महीने के प्रथम दिन को बैसाखी कहा जाता है। बैसाखी से पंजाबी नववर्ष का आरंभ होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, बैसाखी को हर साल 13 अप्रैल या 14 अप्रैल के दिन मनाया जाता है।

    महत्व

    बैसाखी का पर्व सामाजिक और सांस्कृतिक के साथ आर्थिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण है। खालसा पंथ का स्थापना दिवस होने के कारण जहां यह सिक्खों के लिए पवित्र दिन है, वहीं हिंदुओं के लिए भी कई मायनों से खास है। ऐसी मान्यता है कि, बैसाख माह में भगवान बद्रीनाथ की यात्रा की शुरुआत होती है। पद्म पुराण में, बैसाखी के दिन स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। सूर्य के मेष राशि में परिवर्तन करने यानि मेष संक्रांति होने के कारण यह ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होता है। सौर नववर्ष का आरंभ भी इसी दिन से होता है।

    बैसाखी का पर्व उन तीन त्योहारों में से एक है जिसे सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास द्वारा मनाया गया था। बैसाखी को अंतिम सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के राज्याभिषेक के साथ-साथ सिख धर्म के खालसा पंथ की नींव के तौर पर मनाया जाता है, इसलिए इसे सिख धर्म के लिए विशेष माना गया है।

    देशभर में बैसाखी को फसल के मौसम के अंत का प्रतीक माना जाता है जो किसानों के लिए विशेष रूप से समृद्धि का समय है। वैसाखी के नाम से भी प्रसिद्ध है और यह खुशी और उत्सव का पर्व है। यह त्यौहार मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा के लिए महत्वपूर्ण होता है। बड़ी सिख आबादी के द्वारा बैसाखी बहुत ऊर्जा और जोश के साथ मनाई जाती है।

    यह त्यौहार पश्चिम बंगाल में पोहेला बोइशाख, तमिलनाडु में पुथंडु, असम में बोहाग बिहु, पूरामुद्दीन केरल, उत्तराखंड में बिहू, ओडिशा में महा विष्णु संक्रांति और आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में उगादी के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है।

    हिंदुओं के लिए, यह नए साल की शुरुआत है, और आवश्यक स्नान, समारोह और पूजा के साथ मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि माता गंगा हजारों साल पहले पृथ्वी पर अवतरित हुईं और उनके सम्मान में, कई हिंदू पवित्र गंगा नदी के किनारे धार्मिक स्नान के लिए एकत्र हुए। यह कार्रवाई उत्तर भारत में गंगा, श्रीनगर में मुगल गार्डन, जम्मू में तमिलनाडु में नागबानी मंदिर जैसे स्थानों पर अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती है।