आज है ‘महावीर जयंती’, जानिए भगवान महावीर से जुड़ी विशेष बातें

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    -सीमा कुमारी

    ‘महावीर जयंती’ (Mahavir Jayanti) जैन धर्म का प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार हर साल चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन सम्पूर्ण विश्व में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल यह पावन जयंती’14 अप्रैल, बृहस्पतिवार को है।

    ‘महावीर जी’ को जैन धर्म के चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर कहा जाता है। दुनिया भर के जैन समुदाय के लोग इस दिन को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। धार्मिक वेदो को पढ़ते हैं और जरूरतमंद लोगों को दान भी करते हैं। भगवान महावीर जैन धर्म के अंतिम आध्यात्मिक नेता थे। इस दिन को महावीर त्रयोदशी भी कहते हैं। उनका इस पवित्र धरा पर जन्म ईसा से छह सौ वर्ष पूर्व भले ही हुआ हो, किन्तु उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस समय थे। आइए जानें भगवान महावीर से जुडी रोचक बातें-

    इस शुभ दिन पर जैन समुदाय के लोग, भगवान महावीर की मूर्ति के साथ एक जुलूस निकालते हैं और धार्मिक गीत गाते हैं। इस दिन को पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है।

    भगवान महावीर ने भारतीय समाज में फैली तमाम बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया। उनके अभियान का यदि हम अभिप्राय समझें, तो यह अभिव्यक्त होता है कि ‘शुद्धता’ एक व्यापक दृष्टिकोण है, जिसका एक अंग है ‘स्वच्छता’।

    अगर आपके भीतर जीवों के प्रति मैत्री, करुणा, दया या अहिंसा का भाव नहीं है और आप बाहरी साफ-सफाई सिर्फ इसलिए करते हैं कि आपको रोग न हो जाए, तो यह ‘स्वच्छता’ है। लेकिन इस क्रिया में आप साफ-सफाई इसलिए भी करते हैं कि दूसरे जीवों को भी कष्ट न हो, सभी स्वस्थ रहें, जीवित रहें तो अहिंसा का अभिप्राय मुख्य होने से वह ‘शुद्धता’ की कोटि में आता है।

    भगवान महावीर ने कहा कि स्वयं से लड़ो , बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना ? वह जो स्वयम पर विजय कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी।

    भगवान महावीर ने कहा कि पृथ्वी पर हर जीव स्वतंत्र है। कोई किसी पर भी आश्रित नहीं है।

    भगवान महावीर ने मनुष्य में सबसे पहली आवश्यकता इस आंतरिक कचड़े को दूर करने की बताई। उनका स्पष्ट मानना था कि यदि क्रोध, मान, माया, लोभ और इसी तरह के अन्य हिंसा के भाव आत्मा में हैं तो वह अशुद्ध है और ऐसी अवस्था में बाहर से चाहे कितना भी नहाया-धोया जाए, वह सब व्यर्थ है।