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    -सीमा कुमारी

    मार्गशीर्ष यानी, अगहन महीने का दूसरा ‘प्रदोष व्रत’ 16 दिसंबर, गुरुवार को है। इस दिन देवों के देव महादेव और माता पार्वती की पूजा उपासना करने का विधान है। यह व्रत गुरुवार के दिन पड़ने के कारण इसे ‘गुरू प्रदोष’ व्रत कहा जाएगा।

    मान्यता है कि, नियमित रूप से ‘प्रदोष व्रत’  रखने से जीवन की समस्त परेशानियां और संकट स्वतः दूर हो जाते हैं। घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। आइए जानें गुरू प्रदोष व्रत की तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में..

    शुभ- मुहूर्त  

    मार्गशीर्ष या अगहन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 16 दिसंबर, दिन गुरुवार को पड़ रही है। त्रयोदशी तिथि 16 दिसंबर को रात्रि 02 बजकर 01 मिनट पर लगेगी जो कि 17 दिसंबर को प्रातः 04 बजकर 41 मिनट तक रहेगी। इस दिन शिव-पार्वती पूजा का विशेष मुहूर्त प्रदोष काल शाम को 5.39 बजे से 08.20 बजे तक रहेगा।

    पूजा-विधि

    • सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।
    • स्नान करने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र पहन लें।
    • घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
    • अगर संभव है तो व्रत करें।
    • भगवान भोलेनाथ का गंगा जल से अभिषेक करें।
    • भगवान भोलेनाथ को पुष्प अर्पित करें।
    • इस दिन भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा भी करें। किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
    • भगवान शिव को भोग लगाएं। इस बात का ध्यान रखें भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
    • भगवान शिव की आरती करें।
    • इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।

    प्रदोष व्रत का महत्व

    गुरू प्रदोष व्रत रखने से दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है। ‘गुरू प्रदोष’ व्रत मुख्यत: महिलाएं रखती हैं। ‘शनि प्रदोष’ व्रत करने से व्यक्ति को उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत के दिन आप अपने किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए मंत्र जाप भी कर सकते हैं।