-सीमा कुमारी
आज ‘शारदीय नवरात्रि’ का चौथा दिन है, यानी माता ‘कुष्मांडा’ की पूजा-अर्चना का दिन। कहा जाता है कि, जो भी श्रद्धालु सहृदय से मां ‘कुष्मांडा’ की पूजा-अर्चना करता है, उसके समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं।और मां ‘कुष्मांडा’ का आशीर्वाद मिलता है।
पंचांग के अनुसार, इस साल 9 और 10 एक ही दिन पड़ रहे हैं, इसलिए मां ‘चंद्रघंटा’ और देवी ‘कुष्मांडा’ की पूजा एक साथ की जाएगी। सूर्यमण्डल के मध्य में निवास करने वाली देवी ‘कुष्मांडा’ सौर मंडल को अपने संकेत से नियंत्रित करती हैं। मान्यता है कि मां अत्यल्प सेवा और सेवा भक्ति से शीघ्र प्रसन्न हो जाती है और भक्तों को आयु, यश, बल और आरोग्य का आशीर्वाद देती हैं।
अपनी मंद मुस्कान द्वारा ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने के कारण देवी के इस रूप को कुष्मांडा कहा गया। ऐसी मान्यता है कि जब दुनिया नहीं थी, तब इसी देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना, इसीलिए इन्हें सृष्टि की आदिशक्ति कहा जाता है। मां ‘कुष्मांडा’ की आठ भुजाएं हैं। इनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा व जप माला हैं। मां सिंह का सवारी करती हैं। आइए जानें मां ‘कुष्मांडा’ की पूजा विधि और महिमा –
पूजा-विधि
सुबह उठकर सबसे पहले स्नान कर लें। साफ-सुथरे कपड़े पहन लें। इसके बाद मां ‘कुष्मांडा’ का ध्यान कर उनको धूप, गंध, अक्षत्, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें। फिर मां ‘कुष्मांडा’ को हलवे और दही का भोग लगाएं। आप फिर इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण कर सकते हैं। मां का अधिक से अधिक ध्यान करें। पूजा के अंत में मां की आरती करें।
ऐसे करें देवी मां ‘कुष्मांडा’ को प्रसन्न
मां को संतरी रंग पसंद है इसलिए इस दिन इसी रंग के कपड़े पहनाएं। मां को वस्त्र, फूल आदि भी इस रंग के चढ़ाना शुभ रहेगा। माता ‘कुष्मांडा’ को मालपुए, हलवा, फल, सूखे मेवे या दही का भोग लगाएं।
मां कुष्मांडा की महिमा
हिन्दू धर्म में मां ‘कुष्मांडा’ की महिमा बहुत अधिक है। ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार, मां ‘कुष्मांडा’ की उपासना से भक्तों को सभी सिद्धियां मिलती हैं। मां ‘कुष्मांडा’ की कृपा से लोग नीरोग होते हैं और आयु एवं यश में बढ़ोतरी होती है। शांत-संयत होकर, भक्ति-भाव से मां ‘कुष्मांडा’ की पूजा करनी चाहिए। मालपुए का भोग शुभ होता है, और माना जाता है कि इससे बुध ग्रह मजबूत होता है और बुद्धि प्रखर होती है।