ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, 'बसंत पंचमी'(Basant Panchami) का पौराणिक महत्त्व रामायण काल से रहा हैं।
-सीमा कुमारी
आज ‘बंसत पंचमी” (Basant Panchami) का पावन पर्व है। कहते हैं कि, इस दिन जो भी श्रद्धालु मां सरस्वती की पूजा सहृदय एवं निष्छल मन से करता है, उसे बुद्धि और ज्ञान का वरदान मिलता है। माता सरस्वती को ज्ञान, संगीत, कला, विज्ञान और शिल्प-कला की देवी माना जाता है। लोग ज्ञान प्राप्ति और सुस्ती, आलस्य एवं अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिए, बंसत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। इस दिन शिक्षा आरम्भ का भी विधान है। इस दिन को श्री पंचमी और सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानें इस साल बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त
शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, पंचमी तिथि 05 फरवरी को प्रातः 03 बजकर 47 मिनट से शुरू होकर 06 फरवरी को 03 बजकर 47 मिनट तक रहेगी। बसंत पंचमी का पूजन 05 फरवरी को ही किया जाएगा। बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट है। इसके आलावा इस दिन राहुकाल सुबह 9 बजकर 51 मिनट से प्रात:11 बजकर 13 मिनट तक है।
अबूझ मुहूर्त का महत्व –
ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार, ‘बसंत पंचमी का दिन सभी शुभ कार्यो के लिये उपयुक्त माना जाता है। इसी कारण से बसंत पंचमी का दिन अबूझ मुहूर्त के नाम से प्रसिद्ध है। बसंत पंचमी के दिन किसी भी समय सरस्वती पूजा की जा सकती है। यही कारण है कि विद्यालयों में छात्र दोपहर के बाद ही धूम-धाम से माता सरस्वती की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। बसंत पंचमी के दिन देश के कई हिस्सों में बच्चों को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो बसंत पंचमी का दिन विद्या आरम्भ के लिए काफी शुभ माना जाता है इसीलिये माता-पिता इस दिन बच्चों को माता सरस्वती के आशीर्वाद के साथ पढ़ाई की शुरूआत करवाते हैं।
बसंत पंचमी का महत्व
ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, ‘बसंत पंचमी'(Basant Panchami) का पौराणिक महत्त्व रामायण काल से रहा हैं। जब मां सीता को रावण हर कर लंका ले गए तो भगवान श्री राम उन्हें खोजते हुए जिन स्थानों पर गए थे, उनमें दंडकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध बुध खो बैठी और प्रेम वश चख चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। कहते हैं कि, गुजरात के डांग जिले में वह स्थान आज भी है, जहां शबरी मां का आश्रम था। ‘बसंत पंचमी’के दिन ही प्रभु रामचंद्र वहां पधारे थे। इसलिए बसंत पंचमी (Basant Panchami) का महत्व बढ़ गया।