‘नरक चतुर्दशी’ में भगवान विष्णु के इस रूप की करें पूजा, बढ़ेगा आपका सौंदर्य

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    सीमा कुमारी

    नई दिल्ली: सनातन हिन्दू धर्म में ‘नरक चतुर्दशी’ का बड़ा महत्व है। ‘नरक चतुर्दशी’ का पावन पर्व ‘धनतेरस’ के अगले दिन यानी छोटी दीपावली को मनाया जाता है। इस साल ‘नरक चतुर्दशी’ 3 नवंबर यानी बुधवार को है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधि-विधान से श्री हरि भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से सौंदर्य की प्राप्ति होती है। इसे रूप चतुर्दशी, नरक चौदस और काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है।

    इस दिन शाम के समय यमराज की पूजा करने से नरक की यातनाओं और अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है। इस दिन मां काली की पूजा का भी विधान है। कहा जाता है कि इस दिन मां काली की पूजा अर्चना करने से शत्रुओं पर विजय की प्राप्ति होती है। आइए जानें  ‘नरक चतुर्दशी’ का शुभ मुहर्त और पूजा-विधि –

    शुभ मुहूर्त

    नरक चतुर्दशी 3 नवंबर 2021 बुधवार को 09 बजकर 2 मिनट से आरंभ होगी और 4 नवंबर 2021, गुरुवार को सुबह 06 बजकर 03 मिनट पर समाप्त होगी। दोपहर 01 बजकर 33 मिनट से 02 बजकर 17 मिनट तक विजय मुहूर्त रहेगा। पूजा पाठ के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है।

    पूजा-विधि

    मान्यताओं के मुताबिक, सूर्योदय से पहले स्नान कर साफ और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन 6 देवी देवताओं यमराज, श्री कृष्ण, काली माता, भगवान शिव, हनुमान जी और वामन की पूजा का विधान है। ऐसे में घर के ईशान कोण में इन सभी देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित कर विधि विधान से पूजा अर्चना करें। सभी देवी देवताओं के सामने धूप दीप जलाएं, कुमकुम का तिलक लगाएं और मंत्रो का जाप करें।

    गौरतलब जय कि, इस दिन यमदेव की पूजा अर्चना करने अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है और सभी पापों का नाश होता है। तथा घर में सकारात्मकता का वास होता है। ऐसे में शाम के समय यमदेव की पूजा करें और चौखट के दोनों ओर दीप जलाकर रखें।

    महत्व

    नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) को यम चतुर्दशी (Yam Chaturdashi) और रूप चतुर्दशी (Roop Chaturdashi) या रूप चौदस (Roop Chaudas) भी कहते हैं। यह पर्व नरक चौदस (Narak Chaudas) और नरक पूजा (Narak Puja) के नाम से भी प्रसिद्ध है। आमतौर पर, लोग इस पर्व को छोटी दीवाली (Chhot Diwali) भी कहते हैं। इस दिन यमराज की पूजा करने और व्रत रखने का विधान है। 

    ऐसी मान्यता है कि, इस दिन जो श्रद्धालु सूर्योदय से पूर्व अभ्यंग स्नान यानी तिल का तेल लगाकर अपामार्ग (एक प्रकार का पौधा) यानी कि चिचिंटा या लटजीरा की पत्तियां जल में डालकर स्नान करता है, उसे यमराज की विशेष कृपा मिलती है। नरक जाने से मुक्ति म‍िलती है और सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। स्नान के बाद सुबह-सवेरे राधा-कृष्ण के मंदिर में जाकर दर्शन करने से पापों का नाश होता है और रूप-सौंदर्य की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि, महाबली हनुमान का जन्म इसी दिन हुआ था। इसलिए बजरंगबली की भी विशेष पूजा की जाती है।