सनातन धर्म मानने वाले इसलिए रखते हैं सिर पर शिखा? जानिए चोटी रखने के वैज्ञानिक कारण

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    -सीमा कुमारी

    सनातन हिन्दू धर्म में शिखा, चोटी को कहा जाता है। यह प्रथा सदियों पुराने ऋषि-मुनि के प्राचीन काल से चली आ रही है। जिसका पालन हिन्दू धर्म में किया जा रहा है। चोटी रखने को लेकर विज्ञान (Science) ने भी अपना सकारात्मक पक्ष रखा है। आइए जानें आख़िर क्यों हिंदू धर्म में चोटी रखना अनिवार्य बताया गया है।  

    बच्चे का पहले साल के अंत, तीसरे साल या पांचवें साल में जब मुंडन किया जाता है, तो सिर में थोड़े बाल रख दिए जाते हैं, जिसे चोटी कहते हैं। इस कार्य को ‘मुंडन संस्कार’ कहते हैं। सिर पर ‘शिखा’ या ‘चोटी’ रखने का संस्कार ‘यज्ञोपवित’ या ‘उपनयन’ संस्कार में भी किया जाता है। सिर के जिस स्थान पर चोटी रखी जाती है, उसे ‘सहस्त्रार चक्र’ कहते हैं।

    माना जाता है कि इस चर्क के नीचे ही मनुष्य की आत्मा निवास करती है। विज्ञान के अनुसार, यह स्थान मस्तिष्क का केंद्र होता है। यहां से ही बुद्धि, मन, और शरीर के अंगों को नियंत्रित किया जाता है।

    जानकारों के मुताबिक, इस स्थान पर चोटी रखने से मस्तिष्क का संतुलन बना रहता है। शिखा रखने से इस सहस्रार चक्र को जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ‘सहस्रार-चक्र’ का आकार गाय के खुर के समान होता है, इसीलिए चोटी भी गाय के खुर के बराबर ही रखी जाती है।

    महत्व

    ‘सुश्रुत संहिता’ में लिखा है कि मस्तक ऊपर सिर पर जहां भी बालों का आवृत (भंवर) होता है, वहां सम्पूर्ण नाड़ियों और संधियों का मेल होता है। इस स्थान को ‘अधिपतिमर्म’ कहा जाता है। इस स्‍थान पर चोट लगने पर मनुष्य की तत्काल मृत्यु हो जाती है।

    सुषुम्ना के मूल स्थान को ‘मस्तुलिंग’ कहते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों-कान, नाक, जीभ, आंख आदि का संबंध है और कर्मेन्द्रियों-हाथ, पैर, गुदा, इंद्रिय आदि का संबंध मस्तुलिंगंग से है। मस्तिष्क मस्तुलिंगंग जितने सामर्थ्यवान होते हैं, उतनी ही ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों की शक्ति बढ़ती है।

    माना जाता है कि मस्तिस्क को ठंडक की जरूरत होती है। जिसके लिए क्षौर कर्म और गोखुर के बराबर शिखा रखनी जरूरी होती है।