Court approves sacking of 12 Manpa employees, High Court validates Munde's decision
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  • HC ने राज्य मंत्री के आदेश पर लगाई रोक

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नागपुर. काटोल नगर परिषद के अध्यक्ष सहित तमाम पदाधिकारी और सदस्यों की कार्यप्रणाली पर आपत्ति जताते हुए अलग-अलग सदस्यों ने राज्य सरकार के नगर विकास विभाग के पास शिकायत दर्ज की थी, जिस पर 11 नवंबर को हुई वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग की सुनवाई का हवाला देते हुए 4 दिसंबर को राज्य मंत्री ने पूरी नगर परिषद ही बर्खास्त करने के आदेश जारी किए, जिसे चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. याचिका पर मंगलवार को सुनवाई के बाद न्यायाधीश मनीष पितले ने जहां राज्य मंत्री के आदेश पर याचिका का निपटारा होने तक रोक लगा दी. वहीं जारी किए गए आदेश को तकनीकी रूप से गैर कानूनी करार दिया.

नगर परिषद के सभी पदाधिकारी और सदस्यों की ओर से अधि. मोहित खजांची और अधि. महेश धात्रक राज्य सरकार तथा नगर विकास विभाग मंत्री की ओर से अधि. अजय घारे तथा राज्य सरकार के पास शिकायत करनेवाले सदस्यों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील मनोहर और वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद जायसवाल ने पैरवी की.

शिकायत के आधार पर नहीं हो सकता फैसला

याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे दोनों वकीलों की ओर से बताया गया कि नगर विकास विभाग राज्य मंत्री की ओर से गैरकानूनी ढंग से फैसला लिया गया है. हालांकि सरकार के पास सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से अपना पक्ष भी रखा गया, किंतु उनके पक्ष को दरकिनार किया गया. इसके अलावा यदि नगर परिषद के सदस्यों को बर्खास्त करना हो तो नियम 42 के अनुसार राज्य सरकार को भ्रष्टाचार पर स्वयं संज्ञान लेकर कार्यवाही करनी चाहिए. शिकायत के आधार पर इस तरह का फैसला नहीं किया जा सकता है.

उल्लेखनीय है कि नगर पालिका की 27 जुलाई 2009 की विशेष सभा में पंचवटी स्थित म्हाडा कॉलोनी की खुली जगह पर बाजार ओटे निर्माण को अनुमति प्रदान की गई थी. राज्य सरकार के स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना में 4.92 लाख रु. खर्च कर इसका निर्माण किया गया. किंतु सदस्य चरणसिंह ठाकुर के मौखिक आदेश पर 9 जुलाई 2017 को ओटे तोड़ दिए गए. 9 जुलाई को रविवार होने कारण इस कार्यवाही को पिछली तारीख में किए जाने का दिखावा करने के लिए झूठे आदेश निकाले गए.  

राज्य मंत्री सहित सभी को नोटिस

राज्य सरकार के पास की गई शिकायत में तमाम तरह की अनियमितता और भ्रष्टाचार होने का खुलासा किया गया, जिस पर राज्य मंत्री ने सुनवाई करने के बाद सभी पदाधिकारी और सदस्यों को बर्खास्त करने के आदेश जारी गए. हाई कोर्ट में याचिका पर हुई सुनवाई के बाद अदालत ने जहां आदेश पर रोक लगाई, वहीं राज्य सरकार के नगर विकास विभाग सचिव और नगर विकास मंत्री को नोटिस जारी कर 6 सप्ताह में जवाब दायर करने के आदेश दिए.

उल्लेखनीय है कि याचिका में मूल शिकायतकर्ताओं को प्रतिवादी तो नहीं बनाया गया, किंतु शिकायतकर्ताओं की ओर से याचिका पर सुनवाई के दौरान इंटरविनर के रूप में अर्जी दायर की गई.