नागपुर. हत्या के मामले में निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को रद्द करने तथा जमानत के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया जिस पर लंबी बहस के बाद न्यायाधीश वी.एम. देशपांडे और न्यायाधीश अमित बोरकर ने याचिकाकर्ता के खिलाफ पुख्ता साइंटिफिक सबूत होने का हवाला देते हुए सजा रद्द करने से साफ इनकार कर दिया. अदालत ने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता ने एफआईआर में दर्ज चश्मदीद गवाहों को चश्मदीद मानने से इनकार किया है जबकि कानून की परिभाषा में वे चश्मदीद गवाह ही हैं. केवल एक मुद्दे को लेकर राहत मांगी गई जिसे हाई कोर्ट ने ठुकरा दिया. याचिकाकर्ता की ओर से अधि. राहुल हजारे और सरकार की ओर से सहायक सरकारी वकील संजय डोईफोडे ने पैरवी की.
कबूतरबाजी को लेकर विवाद
अभियोजन पक्ष के अनुसार यशोधरानगर निवासी शिकायतकर्ता कपिल शिंदे और याचिकाकर्ता महेन्द्र बिनकर के बीच कबूतरबाजी को लेकर विवाद था. दोनों एक दूसरे को अच्छे से जानते थे. कपिल ने 23 मई 2016 को यशोधरानगर थाने में शिकायत दर्ज की थी. शिकायत के अनुसार खुलासा हुआ कि दोनों एक दूसरे को जानते थे. दोनों के पास कबूतर थे. यही विवाद की जड़ थी. पहले भी दोनों के बीच विवाद हुआ था जिसमें शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता पर चाकू से हमला किया था. इसकी एफआईआर दर्ज की गई थी जिससे याचिकाकर्ता कपिल से बदला लेने की फिराक में था. एफआईआर के अनुसार घटना के 2 महीने पहले भी दोनों के बीच झगड़ा हुआ था किंतु थाने में दोनों के आपसी समझौते के कारण मसला हल हो गया था.
मां पर हो गया हमला
एफआईआर के अनुसार 22 मई की रात 10.45 बजे जब शिकायतकर्ता कपिल घर लौट रहा था, उसी समय महेन्द्र वहां पहुंच गया और उस पर टूट पड़ा, जान बचाने के लिए वह घर की और दौड़ा और परिजनों को आवाज लगाई. बेटे की आवाज सुनकर जैसे ही मां बचाने के लिए पहुंची, उसी पर खंजर से हमला कर दिया जिसके बाद उसकी अस्पताल में मौत हो गई. इस संदर्भ में डॉक्टरों द्वारा की गई मेडिकल जांच के सबूत और अन्य वैज्ञानिक सबूतों से हत्या साबित हुई. यहां तक कि निचली अदालत ने प्रत्येक मुद्दे का खुलासा किया. महिला पर 13 घाव पाए गए थे. तमाम तथ्यों को देखते हुए अदालत ने याचिकाकर्ता को राहत देने से साफ इनकार कर दिया.