केंद्र और राज्य की लड़ाई में बड़े अधिकार बने फुटबॉल

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, ब्यूरोक्रेट अपने राजनीतिक आकाओं के लिए फुटबाल के समान हो जाते हैं. उन्हें कोई इधर से किक मारता है, कोई उधर से! यदि केंद्र और राज्य में परस्पर विरोधी पार्टियों की सरकार हुई तो इन सरकारी बाबुओं की हालत दोनों के बीच फंसे त्रिशंकु जैसी हो जाती है. वे दुविधा में पड़ जाते हैं कि इधर जाऊं या उधर जाऊं!’’ हमने कहा, ‘‘आपको कुछ गलतफहमी हो रही है. प्रशासन तंत्र तो आईएएस अफसर ही चलाते हैं, मंत्री तो सिर्फ भाषणबाजी करते हैं.

    नीतियों और योजनाओं को ब्यूरोक्रेट ही लागू करते हैं. अंग्रेजों के जमाने में आईसीएस (इंडियन सिविल सर्विस) थी, जो स्वतंत्र भारत में सरदार पटेल की सार्थक पहल से आईएएस (इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस) बना दी गई. इसमें एक से एक प्रतिभाशाली अधिकारी शामिल हैं. कलेक्टर, कमिश्नर, सचिव, मुख्य सचिव सभी आईएएस होते हैं.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘राजनेताओं का उन पर लगातार दबाव बना रहता है. बंगाल के मुख्य सचिव अलापन बंदोपाध्याय भी पीएम मोदी और बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की खींचतान में फंस गए. प्रधानमंत्री ने समुद्री तूफान से हुए नुकसान की समीक्षा करने के लिए जो बैठक ली थी, उसमें ममता बनर्जी और अलापन बंदोपाध्याय आकर तुरंत चले गए. इस बात से केंद्र सरकार बंदोपाध्याय से भी नाराज हो गई. उन्हें अचानक केंद्र की सेवा में दिल्ली वापस बुलाया गया.

    केंद्र ने अलापन को कारण बताओ नोटिस भेजा लेकिन केंद्र की कार्रवाई के चंद मिनट बाद ही ममता बनर्जी ने अलापन को मुख्य सचिव पद से रिटायर कर 3 साल के लिए अपना मुख्य सलाहकार बना दिया.’’ हमने कहा, ‘‘केंद्र सरकार को अधिकार है कि वह आईएएस अधिकारी को वापस बुला सकती है लेकिन इसके लिए उसे संबंधित राज्य सरकार से सहमति लेनी चाहिए. यदि सहमति नहीं हो पाती, तब भी केंद्र का निर्णय प्रभावी माना जाता है क्योंकि ये अधिकारी अखिल भारतीय सेवा के होते हैं. केंद्र अलापन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई कर उनकी पेंशन या अन्य लाभ रोक सकता है.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, अलापन अब ममता की छत्रछाया में हैं, केंद्र उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता. वैसे दो नेताओं की लड़ाई में किसी अफसर का पिस जाना अच्छी बात नहीं है. ऐसी घटना अन्य राज्यों में भी हो सकती है.’’