सारा सोना मरीजों के नाम गुरुद्वारा का श्रेष्ठ काम मंदिरों के लिए पैगाम

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, (Nishanebaaz) नांदेड़ के गुरुद्वारा तख्त हजूर साहिब ने मानवता व उदारता की मिसाल कायम करते हुए घोषणा की कि वह अपने यहां पिछले 50 वर्षों से जमा हुए सारे सोने को दान कर देगा. इन पैसों से अस्पताल बनाए जाएंगे और ऐसा होने पर आसपास के गांवों के लोग नांदेड़ में अपना इलाज करा सकेंगे. कोरोना महामारी (Coronavirus) को देखते हुए यह निर्णय सराहनीय है. देश के अन्य धनी मंदिर भी ऐसा ही कदम उठा सकते हैं. तिरुपति बालाजी मंदिर और उसके बाद शिरडी के साईं बाबा संस्थान (Sai Baba Institute) में बहुत स्वर्ण और नकदी है. यह धन समाज का है तो समाज की भलाई के लिए लगना चाहिए. ये धार्मिक संस्थान अपने कोष का पूरा नहीं तो कुछ हिस्सा कोरोना अस्पताल बनवाने तथा बेड, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर की व्यवस्था करने, वैक्सीन निर्माण तथा दवाइयां उपलब्ध करने के लिए कर सकते हैं.

    मानव सेवा ही सबसे बड़ी सेवा है.’’ हमने कहा, ‘‘आपका सुझाव अच्छा है. कहा गया है- परहित सरिस धरम नहीं भाई. परोपकार की सीख प्रकृति से मिलती है. नदियां अपना जल नहीं पीतीं, वृक्ष अपने फल नहीं खाते. धरती में एक दाना बोने पर सौ दाने निकल आते हैं. देने की या परोपकार की प्रवृत्ति होनी चाहिए. रखा हुआ धन डेड मनी होता है. उसका सत्कार्यों के लिए दान करना चाहिए. विदेशी आक्रमण, प्राकृतिक आपदा या महामारी के समय मुक्त हस्त से दान करना चाहिए. राजा बलि और कर्ण की दानशीलता से लोग कुछ तो सीखें.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, लॉकडाउन से मंदिर बंद हैं जिस कारण वहां चढ़ावा भी नहीं आ रहा है. पुजारी व कर्मचारी भी दान-दक्षिणा से वंचित हैं.’’ हमने कहा, ‘‘फिर भी दानशीलता होनी चाहिए. अपने यहां तो फिल्मी हीरोइन ने भी गाया था- सोना ले जा रे, चांदी ले जा रे, दिल कैसे दे दूं कि जोगी बड़ी बदनामी होगी.’’