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उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ बिहार के एक छोटे से गांव डुमराव के रहने वाले थे। उन्हें बचपन से ही शहनाई बजाने का शौक था।
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उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ महज 6 साल की उम्र में अपने परिवार वालों के साथ बनारस आकर बस गए थे। यहीं से उन्होंने अपने संगीत की शुरूआत की थी।
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साल 1947 में लालकिले पर भारत का पहला झंडा फहराते हुए उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ की शहनाई की धुनें बज रही थीं। जोकि लोगों के बीच आज़ादी का संदेश बांट रही थीं।
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वहीं आज भी हर साल 15 अगस्त को जब भी हमारे देश के प्रधानमंत्री लालकिले पर भाषण देते हैं, तो उसके बाद उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ की शहनाई बजती है।
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उन्होंने शादी-ब्याह की महफ़िलों से लेकर संगीत के अंतरराष्ट्रीय मंचों तक अथक शहनाई बजाई। काशी के विश्वनाथ मंदिर के वे अधिकृत शहनाई वादक थे।
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उस्ताद का निकाह 16 साल की उम्र में मुग्गन ख़ानम के साथ हुआ जो उनके मामू सादिक़ अली की दूसरी बेटी थी। उनसे उन्हें 9 संताने हुईं।
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लगातार 30-35 सालों तक साधना, छह घंटे का रोज रियाज़ उनकी दिनचर्या में शामिल था।
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हिंदी फिल्म 'गूंज उठी शहनाई' में उनकी शहनाई की स्वरलहरियों ने देश लोगों के दिलों में जगह बना दी। फिल्म 'स्वदेश' तथा सत्यजीत रे की चर्चित बंगला फिल्म 'जलसाघर' में भी उन्होंने अपनी शहनाई का जादू बिखेरा था।
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वहीं, फ़िल्मकार गौतम घोष ने उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ के संगीत की अंतर्दृष्टि का स्पर्श करने वाली बेहतरीन फिल्म 'मीटिंग अ माइलस्टोन' बनाई थी।