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    -सीमा कुमारी

    भारतीय संस्‍कृति में गुरू का स्थान सर्वोपरि है। क्योंकि,”गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरू देवो महेश्वरा, गुरू साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः।।” इस श्लोक का अर्थ है कि गुरू ही ब्रह्मा हैं, गुरू ही विष्णु हैं और गुरू ही भगवान शिव शंभू हैं। गुरू ही साक्षात् परमब्रह्म हैं। ऐसे गुरू को मेरा शत -शत प्रणाम।

    भारत में गुरू को आदिकाल से ही ईश्वर का दर्जा प्राप्त है। और गुरू के महत्ता को ध्यान में रखते हुए हर वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को ‘गुरू पूर्णिमा’ का पर्व मनाया जाता है। ‘आषाढ़ पूर्णिमा’ को महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। उन्होंने वेदों का ज्ञान दिया और पुराणों की रचना की। उनके सम्मान में ‘गुरू पूर्णिमा’ (Guru Purnima) मनाई जाती है। इस दिन गुरुजनों की पूजा करने की परंपरा है। इस वर्ष ‘गुरू पूर्णिमा’ 24 जुलाई दिन शनिवार को है।  आइए जानें ‘गुरू पूर्णिमा’ का शुभ मुहर्त और पूजा-विधि:

    शुभ मुहूर्त:

    पंचांग  के अनुसार, आषाढ़ पूर्णिमा तिथि 23 जुलाई दिन शुक्रवार सुबह 10 बजकर 43 मिनट से शुरू हो रही है। यह 24 जुलाई दिन शनिवार को सुबह 08 बजकर 06 मिनट तक मान्य होगी। उदया तिथि 24 को प्राप्त है, इसलिए इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 24 जुलाई को है।

    ‘गुरू पूर्णिमा’ पर ऐसे करें:

    इस दिन सुबह जल्‍दी स्‍नान करके गुरू के स्‍थान पर पूजन सामग्री लेकर जाएं। पूजा (Puja) के लिए फूलों की माला, श्रीफल, रोली, जनेउ, दक्षिणा, पंचवस्त्र, फल-मिठाई लें। गुरू के चरण स्‍पर्श करके उनकी चरण पूजा करें। उन्‍हें सामर्थ्‍य अनुसार उपहार दें। गुरू का आशीर्वाद लें।जिंदगी में सफलता पाने के लिए गुरू का आशीर्वाद बहुत जरूरी होता है। यदि कोरोना महामारी के कारण गुरू के स्‍थान पर नहीं जा सकते हैं, तो घर पर ही उनकी फोटो की पूजा कर सकते हैं।

    ‘गुरू पूर्णिमा’ का महत्व:

    पौराणिक काल के महान व्यक्तित्व, ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत और अट्ठारह पुराण जैसे अद्भुत साहित्यों की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था। वेदव्यास ऋषि पराशर के पुत्र थे। हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार, महर्षि व्यास तीनों काल के ज्ञाता थे। उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देख कर यह जान लिया था, कि कलियुग में धर्म के प्रति लोगों की रुचि कम हो जाएगी। धर्म में रुचि कम होने के कारण मनुष्य ईश्वर में विश्वास न रखने वाला, कर्तव्य से विमुख और कम आयु वाला हो जाएगा। एक बड़े और सम्पूर्ण वेद का अध्ययन करना उसके बस की बात नहीं होगी।इसलिए महर्षि व्यास ने वेद को चार भागों में बांट दिया जिससे कि अल्प बुद्धि और अल्प स्मरण शक्ति रखने वाले लोग भी वेदों का अध्ययन करके लाभ उठा सकें।

    व्यास जी ने वेदों को अलग-अलग खण्डों में बाँटने के बाद उनका नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद रखा। वेदों का इस प्रकार विभाजन करने के कारण ही वह वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने ऋग्वेद,यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान अपने प्रिय शिष्यों वैशम्पायन, सुमन्तुमुनि, पैल और जैमिन को दिया। वेदों में मौजूद ज्ञान अत्यंत रहस्यमयी और मुश्किल होने के कारण ही महर्षि वेदव्यास ने पुराणों की रचना पांचवें वेद के रूप में की, जिनमें वेद के ज्ञान को रोचक किस्से-कहानियों के रूप में समझाया गया है। पुराणों का ज्ञान उन्होंने अपने शिष्य रोम हर्षण को दिया।

    व्यास जी के शिष्यों ने अपनी बुद्धि बल के अनुसार उन वेदों को अनेक शाखाओं और उप-शाखाओं में बांट दिया। महर्षि व्यास ने महाभारत की रचना भी की थी। वे हमारे आदि गुरू माने जाते हैं। ‘गूरू पूर्णिमा’ (Guru Purnima) का यह प्रसिद्ध त्यौहार व्यास जी की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इसलिए इस पर्व को ‘व्यास पूर्णिमा’ (Vyas Purnima) भी कहते हैं। हमें अपने गुरुओं को व्यास जी का अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए।

    इस दिन केवल गुरू की ही नहीं, बल्कि परिवार में जो भी बड़ा है, अर्थात माता-पिता, दादा-दादी आदि, उनको भी गुरू मानकर सम्मान, पूजन करना चाहिए। गुरुजनों की कृपा से ही विद्यार्थी को विद्या आती है। उसके हृदय का अज्ञान और अन्धकार दूर होता है। गुरू का आशीर्वाद ही प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगल करने वाला होता है। संसार की सम्पूर्ण विद्याएं गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती है। गुरू से मन्त्र प्राप्त करने के लिए भी यह दिन श्रेष्ठ है। इस दिन गुरुजनों की यथा संभव सेवा करने का बहुत महत्व है। इसलिए इस पर्व को श्रद्धापूर्वक जरूर मनाना चाहिए।