जानें तुलसी के जन्म और विवाह से जुड़ी कथा

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देशभर में आज और कल (25 नवंबर और 26 नवंबर) तुलसी विवाह का त्यौहार मनाया जा रहा है। यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन से ही विवाह की शुभ तिथियां शुरू हो जाती है। इस दिन तुलसी जी की पूजा अर्चना की जाती है। साथ ही उनका विवाह भी करवाया जाता है ,सुहागिन महिलाएं सुहाग की चीजें और लाल चुनरी तुलसी माता को अर्पित करती हैं। तो आइए जानते हैं इससे जुडी कथा के बारे में…

पूर्व जन्म में तुलसी (पौधा) एक लड़की थी, जिनका नाम वृंदा था। वह राक्षस कुल में जन्मी थी। तुलसी बचपन से ही भगवान विष्णु की परम भक्त थी। उसके बाद जब वृंदा बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल के दानव राज जलंधर से हुआ, राक्षस जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा एक पतिव्रता स्त्री थी, वह अपने पति की बहुत सेवा करती थी। एक दिन जब देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगा तो वृंदा ने कहा, “स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं, आप जब तक युद्ध में रहेंगे, मैं पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी। जब तक आप नहीं लौट आते मैं अपना संकल्प नहीं छोड़ूंगी।”

इसी संकल्प के साथ वृंदा पूजा के लिए बैठ गई और जलंधर युद्ध के लिए चला गया। वृंदा के व्रत के प्रभाव से जलंधर जीत गया, देवता भी उसे हरा नहीं सके। जब सारे देवता जलंधर से हरने लगे तब सब विष्णु जी के पास पहुंचे और सभी ने भगवान से प्रार्थना की। देवताओं की प्राथना सुन भगवान बोले, “वृंदा मेरी परम भक्त है, मैं उससे छल नहीं कर सकता।” भगवन की यह बात सुन देवता बोले कि “हे प्रभु दूसरा कोई उपाय हो तो बताएं लेकिन हमारी मदद जरूर करें।” इस पर भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धरा और वृंदा के महल में पहुंच गए।

वृंदा ने जैसे ही अपने पति जलंधर को देखा, तो वह तुरंत पूजा से उठ गई और उनके चरण को छू लिया। जिसके बाद वृंदा का संकल्प टूटा और युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार गिराया। उसका सिर काट कर अलग कर दिया। जलंधर का कटा हुआ सिर जब महल में आ गिरा तो वृंदा ने आश्चर्य से भगवान की ओर देखा जिन्होंने जलंधर का रूप धर रखा था। इस पर भगवान विष्णु अपने रूप में आ गए पर कुछ बोल न सके। 

जिसके बाद वृंदा ने कुपित होकर भगवान को श्राप दे दिया कि वे पत्थर के हो जाएं। जिसके बाद भगवान तुरंत पत्थर के हो गए, सभी देवताओं में हाहाकार मच गया। देवताओं की प्रार्थना के बाद वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया। इसके बाद वे अपने पति का सिर लेकर सती हो गईं। उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने उस पौधे का नाम तुलसी रखा और कहा कि मैं इस पत्थर रूप में भी रहुंगा, जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा। 

इतना ही नहीं भगवान विष्णु ने यह भी कहा कि किसी भी शुभ कार्य में बिना तुलसी जी के वह भोग भगवान स्वीकार नहीं करेंगे। तभी से ही तुलसी जी कि पूजा होने लगी। कार्तिक मास में तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ किया जाता है। साथ ही देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।