Mokshada Ekadashi 2023

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    -सीमा कुमारी

    पंचांग के अनुसार, वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को ‘वरुथिनी एकादशी’ व्रत रखा जाता है, जो इस साल 07 मई, शुक्रवार को है। शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति ‘वरूथिनी एकादशी’ व्रत का पालन विधि-विधान से करता है उसे वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाले जातकों के समस्त प्रकार के पाप और कष्ट मिट जाते हैं। आइए जानें वरुथिनी एकादशी की तिथि, मुहूर्त, व्रत विधि और कथा…

    शुभ मुहूर्त:

    ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 06 मई दिन गुरुवार को दोपहर 02 बजकर 10 मिनट से हो रहा है। वहीं, इसका समापन अगले दिन 07 मई को दोपहर 03 बजकर 32 मिनट पर होगा।

    हिंदू रीति रिवाजों के मुताबिक, एकादशी की  उदयव्यापिनी तिथि 07 मई को प्राप्त हो रही है। तो ऐसे में एकादशी व्रत अर्थात ‘वरुथिनी एकादशी’ का व्रत 07 मई दिन शुक्रवार को रखा जाएगा।

    पूजा विधि:

    ‘वरुथिनी एकादशी’ के दिन सुबह प्रात: जल्दी उठ कर स्नान करें।

    स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीपक जलाएं।

    भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान करवाएं और उन्हें साफ धुले हुए वस्त्र पहनाएं।

    भगवान विष्णु की विधि:

    विधि-विधान से पूजा करें। भगवान की आरती करें।

    ‘वरुथिनी एकादशी’ के दिन भगवान विष्णु को भोग अवश्य लगवाएं।द्वादशी तिथि के दिन व्रत खोलें

    कथा:

    नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज करता था। राजा की रुचि हमेशा धार्मिक कार्यों में रहती थी। वह हमेशा पूजा-पाठ में लीन रहते था। एक बार राजा जंगल में तपस्या में लीन था तभी एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा इस घटना से तनिक भी भयभीत नहीं हुआ और भालू राजा के पैर को चबाते हुए घसीटकर ले जाने लगा। तब राजा मान्धाता ने अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की।

    राजा की पुकार सुनकर भगवान विष्णु प्रकट ने चक्र से भालू को मार डाला। राजा का पैर भालू खा चुका था इसलिए राजा इस बात को लेकर बहुत परेशान हो गया। वहीं अपने दुखी भक्त को देखकर भगवान विष्णु बोले- ‘हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और ‘वरुथिनी एकादशी’ का व्रत रखकर मेरी ‘वराह अवतार’ मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था। भगवान की आज्ञा मानकर राजा ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक यह व्रत किया। इसके प्रभाव से वह सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया।