महायुति में सैंडविच बन गए अजीत पवार

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हर नेता की अपनी सोच और कार्यशैली होती है जिसके अनुरुप वह निर्णय लेता और काम निपटाता है. कुछ नेता ढीले होते हैं तो कुछ चुस्त और चपल! असल में अजीत पवार का एक स्वभाव है. उस स्वभाव के चलते वे खुद को नो-नानसेंस नेता समझते हैं और डिलीवरी पर भरोसा करते हैं. जनता के कार्यों को वे प्राथमिकता देते रहे हैं.

जिस तरह 70-80 के दशक में भारतीय प्रशासनिक सेवा का स्वभाव ऐसा माना गया था कि वह डिलीवरी सिस्टम पर काम करती थी अर्थात किसी भी काम को अंजाम तक पहुंचाती थी, ठीक वैसे ही अजीत का स्वभाव बना हुआ है. चाहे वह महाराष्ट्र विकास आघाड़ी में हों या बीजेपी और शिवसेना (शिंदे गुट) की आघाड़ी में, सरकार में रहने पर वे फटाफट निर्णय लेनेवाले मंत्री के रूप में जाने जाते हैं. निर्णय टालना या काम को पेंडिंग रखना उनके स्वभाव में ही नहीं है. निश्चित रूप से वे निर्णय कहीं न कहीं राजनीति से प्रेरित रहते हैं.

जब तक समान विचारधारा वालों की सरकार होती है तत्परता से बेधड़क ठोस निर्णय लेने में कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन अलग तरह के सेटअप वाली सरकार में ऐसा तौर तरीका स्वीकार्य नहीं होता. अजीत शायद भूल गए कि उन्होंने विचारधारा परे रखकर वे अन्य पार्टियों की सरकार में शामिल हुए जिसमें एक निर्णय लेने पर दूसरे को कस्ट होना स्वाभाविक हो जाता है. जो अजीत की नजरों में सही है वह दूसरे को अनुचित नजर आता है. अपना-अपना दृष्टिकोण है. त्वरित प्रशासनिक फैसले लेना अच्छी आदत हो सकती है लेकिन यह नियम गठबंधन में नहीं चलता. ऐसे शीघ्रता से लिए गए एकांगी निर्णय से सरकार के अन्य सहयोगी भी सहमत हो जाएंगे, यह कदापि जरूरी नहीं है.

शिंदे ने फाइलों पर टोल नाका लगा दिया

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए देवेंद्र फडणवीस ने अपनी जिन प्रशासनिक क्षमताओं का प्रदर्शन किया, उसकी जानकारी सभी को है. बीजेपी नेतृत्व ने उन्हें वर्तमान शिंदे सरकार को चलाने और टिकाए रखने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप रखी है. शिवसेना टूटने के बाद शिंदे के साथ सरकार बनाने के बाद उसकी मजबूती को अक्षुण्ण बनाए रखना फडणवीस का दायित्व है और वह इसे लेकर बेहद सजग भी हैं. एकनाथ शिंदे के नेतृत्ववाली सरकार को ग्रहण न लगे इसलिए वे किसी भी फाइल को गौर से देख लेना जरूरी समझते हैं. ऐसा इसलिए ताकि जल्दबाजी में कहीं कोई चूक या गफलत न हो जाए.

अजीत पवार को इस तरह की आदत नहीं है. मुख्यमंत्री शिंदे को अजीत की फटाफट निर्णयवाली कार्यशैली रास नहीं आ रही थी. इसी वजह से उन्होंने अजीत द्वारा क्लीयर की जानेवाली फाइलों पर एक नया टोल नाका लगा दिया. राज्य के वित्तमंत्री के रूप में शक्कर कारखानों को लोन दिए जाने के मामले में अजीत पवार द्वारा लिए गए निर्णय को फडणवीस ने रद्द कर दिया. इसे फडणवीस का अजीत को करारा झटका माना जा रहा है. उपमुख्यमंत्री बनने के बाद से अजीत पवार विभिन्न विभागों की बैठके लेकर अपना पावर जता रहे हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री शिंदे की अनुपस्थिति में उनके वार रूम में भी प्रशासनिक अधिकारियों की बैठक ली थी. राज्य की विभिन्न चीनी मिलों के लिए एनसीडीसी से ऋण मंजूर कराने के लिए पवार ने कठिन शर्ते लगाई थी.

इस सरकार में कुछ नहीं कर सकते

माना जाता है कि बीजेपी के एक नेता के हस्तक्षेप के बाद फडणवीस ने शर्ते हटाने का निर्णय ले लिया. इसे उपमुख्यमंत्री पवार के बढ़ते दखल को रोकने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. सरकार की रैंकिंग में अजीत कितने नंबर पर हैं, यह तो आनेवाला वक्त ही बताएगा लेकिन इस सरकार में वे कुछ नहीं कर सकते. उन्हें जो भी करना होगा वह देवेंद्र फडणवीस की सहमति और शिंदे की अनुमति से ही करना होगा. यह उनके लिए हताशाजनक स्थिति है.