राजस्थान में गहलोत के सामने चुनौती

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कांग्रेस का प्रयास राजस्थान में कर्नाटक फार्मूला दोहराने का है लेकिन दोनों राज्यों की राजनीतिक स्थितियां भिन्न हैं. राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सबसे बड़ी एंटी इन्कम्बेंसी की चुनौती को झेल रहे हैं. पिछले 5 चुनावों में कोई भी सरकार वहां दोबारा चुनकर नहीं आई. 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 45 प्रतिशत वोट शेयर के साथ कुल 200 में से 163 सीटें जीती थीं जो सर्वाधिक थीं. 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 100 सीटें मिलीं जबकि बीजेपी 73 सीटों पर सिमट कर रह गई. दोनों पार्टियों के वोट शेयर में सिर्फ 0.5 प्रतिशत का मामूली अंतर था. 

अशोक गहलोत चौथी बार सरकार बनाने का अरमान रखते हैं और अपनी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं पर भरोसा करते हैं. राज्य कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का गत वर्ष जो निर्णय लिया गया था, वह आर्थिक दृष्टि से नुकसानदेह रहा.

 कर्नाटक के समान लोकलुभावन योजनाएं लागू कर तथा गुटों में सुलह करवाकर कांग्रेस राजस्थान में भी चुनाव जीतना चाहती है. वहां गहलोत और सचिन पायलट के बीच तालमेल करा लिया गया है. दूसरी ओर बीजेपी के चुनाव अभियान का नेतृत्व प्रधानमंत्री मोदी कर रहे हैं. वे राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ का दौरा कर वहां सभाएं ले रहे हैं. बीजेपी ने अपनी खास रणनीति के तहत केंद्र व राज्य के मंत्रियों तथा हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के सांसदों-विधायकों को चुनाव प्रचार में लगा दिया है. प्रधानमंत्री ने गहलोत सरकार पर रिश्वत और कमीशन की संस्कृति चलाने का आरोप लगाया और राज्य की कानून व्यवस्था में गिरावट को लेकर तीखी आलोचना की..