कागजी मेडिकल कॉलेज से पढे डॉक्टर मरीजों के लिए खतरा

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जनता के स्वास्थ्य के साथ इतनी बड़ी धांधली और धोखाधड़ी शायद किसी देश मैं नहीं होती होगी जैसी भारत में हो रही है. पता नहीं ‘दीया तले अंधेरा’ की ऐसी स्थिति को इंडियन मेडिकल काउंसिल कैसे बर्दाश्त कर रही है और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी क्यों इसे नजरअंदाज कर रहा है? यह कटु सत्य है कि देश के ज्यादातर मेडिकल कॉलेजों का अस्तित्व सिर्फ कागजों पर है. 2022-23 में अधिकतर मेडिकल कॉलेज बिना टीचिंग फैकल्टी के चलाए गए. जब पढ़ाने के लिए प्रोफेसर ही नहीं हैं तो छात्र कैसे सीख पाएंगे? यह हद दर्जे की धांधली, अव्यवस्था और अराजकता है.

ऐसे मेडिकल कॉलेजों से पढ़े डॉक्टरों को भले ही डिग्री मिल जाए लेकिन वे मरीजों के लिए खतरा बन सकते हैं. न तो उन्हें विधिवत मेडिकल शिक्षा मिली है और न अनुभव है, ऐसे में नीम हकीम खतरे जान’ वाली नौबत आ सकती है. नेशनल मेडिकल कमीशन (राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ) ने बताया कि सभी मेडिकल इंस्टीट्यूट में छात्रों की उपस्थिति 50 फीसदी से भी कम रही है. एनएमसी ने कहा कि मेडिकल कॉलेज के स्टुडेंट्स इमरजेंसी डिपार्टमेंट में ड्यूटी को ब्रेक के तौर पर मानते हैं.

वे रोजाना वहां नहीं जाते क्योंकि वहां कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर के अलावा उनसे बात करने के लिए कोई नहीं होता. डॉक्टरों की गैरमौजूदगी में इमरजेंसी डिपार्टमेंट में दाखिल किसी मरीज का बच पाना मुश्किल है. उसे कौन अटेंड करेगा और उसकी प्राणरक्षा के लिए कौन प्रयास करेगा? यह तो मरीज की जान से खिलवाड़ हुआ, बगैर मार्गदर्शन के नौसिखिए डॉक्टर वहां कर भी क्या पाएंगे? वहां इमरजेंसी मेडिकल स्पेशलिस्ट होना चाहिए.

ऐसे कॉलेजों की क्या उपयोगिता

नए मेडिकल कॉलेजों को भी इस मामले में गंभीर होना चाहिए. यदि वे फैकल्टी का इंतजार नहीं करते और कागजों पर कॉलेज चलाते हैं तो समाज और देश के लिए उनकी कौनसी उपयोगिता है? इसके अलावा निवासी डाक्टरों को समय पर छात्रवृत्ति देने में भी कोताही की जाती है, जिससे उनमें असंतोष पनपता है. हाल ही में एनएमसी उपसचिव औजेंद्र सिंह ने सभी मेडिकल कॉलेजों के लिए चेतावनी जारी करते हुए कहा कि महीने भर में डॉक्टरों को छात्रवृत्ति की रकम नहीं दी गई तो कॉलेज की मान्यता रद्द कर दी जाएगी.

इमरजेंसी मेडिकल स्पेशलिस्ट क्यों नहीं

एसोसिएशन ऑफ इमरजेंसी फिजीशियन ऑफ इंडिया (एईपीआई) की शिकायत पर जवाब देते हुए एनएमसी ने यह स्वीकार किया कि हालात सचमुच ठीक नहीं हैं. वास्तव में एईपीआई ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के नए मेडिकल कॉलेजों के लिए इमरजेंसी मेडिकल स्पेशलिस्ट की जरूरत को खत्म करने के फैसले के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी. एनएमसी ने हाल ही में जारी की गई अपनी अधिसूचना में नए मेडिकल कॉलेजों से इमरजेंसी डिपार्टमेंट की अनिवार्यता खत्म कर दी है. उन्होंने नए मेडिकल कॉलेज को मंजरी या मान्यता देने के लिए अनिवार्य 14 डिपार्टमेंट में से इमरजेंसी डिपार्टमेंट को बाहर कर दिया है.

एनएमसी के अपने तर्क हो सकते हैं लेकिन लोग जब किसी मरीज को बेहद गंभीर हालत में मेडिकल कॉलेज अस्पताल में लाते हैं तो उन्हें भरोसा रहता है कि इमरजेंसी डिपार्टमेंट यथासंभव प्रयास कर मरीज की जान बचा लेगा. दुर्घटना से जुड़े केस भी सीधे इमरजेंसी विभाग में लाए जाते हैं. ऐसे मामलों में क्या किया जाए और इलाज में कैसी तत्परता बरती जाए, इसका प्रशिक्षण अनुभवी इमरजेंसी मेडिकल स्पेशलिस्ट दे सकता है. जब इस विभाग की अनिवार्यता ही खत्म कर दी गई तो छात्र कैसे सीखेंगे कि आपातकालीन स्थिति से कैसे निपटा जाए ?