
छत्तीसगढ़ का बस्तर व राजनांदगांव जिला नक्सली गतिविधियों का केंद्र रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में फिर एक बार भयाक नक्सली अटैक हुआ जिसमें डिस्ट्रक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी) के 24 जवानों से भरी बस को आईडीई ब्लास्ट करके उड़ाया गया. धमाका इतना भीषण था कि वह उछलकर उनके नीचे खाई में जा गिरी. यह बस नारायणपुर में नक्सल विरोधी अभियान के बाद वापस लौट रही थी तभी कन्हरगांव-कादेनार रोड पर धमाका हुआ जिसमें 5 जवान शहीद हुए व 14 गंभीर रूप से घायल हुए इससे स्पष्ट है कि नक्सली हिंसा पर काबू पाने के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बड़े-बड़े दावों के बावजूद नक्सली भारी पड़ रहे हैं.
हाल ही में नक्सलियों ने पत्र भेजा था जिसमें कहा गया था कि सरकार जंगल से फोर्स हटाए, जेल में बंद नक्सलियों को रिहा करे तो शांति वार्ता होगी. नक्सलियों की इन शर्तों को ठुकराते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि नक्सलियों को पहले हथियार का रास्ता छोड़ना पड़ेगा और भारत में संविधान के प्रति आस्था जतानी पड़ेगी तभी बातचीत हो सकेगी. नक्सलियों के साथ शांति वार्ता उनकी शर्तों पर नहीं, बल्कि सरकार की नीति के अनुसार होगी. मुख्यमंत्री के इस सख्त बयान के दूसरे ही दिन नक्सलियों ने यह ब्लास्ट कर सरकार को जबरदस्त चुनौती दी है.
इंसानियत के दुश्मन
छत्तीसगढ़ का बस्तर व राजनांदगांव जिला नक्सली गतिविधियों का केंद्र रहे हैं. कितनी ही बार ऐसा हुआ कि नक्सली कोई बड़ी वारदात कर जंगल के रास्ते आंध्रप्रदेश निकल जाते थे. मई 2013 में बस्तर जिले की सुकमा घाटी में नक्सलियों ने घात लगाकर सभी ओर से गोली बारी की थी जिसमें कांग्रेस नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के अलावा नंदकुमार पटेल व अन्य कांग्रेसी नेता मारे गए थे. देश के आधा दर्जन से अधिक राज्यों में नक्सली सक्रिय हैं. इनके सफेदपोश समर्थक शहरों में भी मौजूद हैं जो नक्सली हिंसा को सही बताने में पीछे नहीं रहते. नक्सलियों को आधुनिक हथियार और आईईडी विस्फोटक कहां से उपलब्धहोते हैं, यह भी एक पहेली है.
विदेशी ताकतों की मदद
माना जाता है कि भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय ताकतों की नक्सलियों को मदद है. नक्सली पशुपति (नेपाल) से तिरुपति (आंध्रप्रदेश) तक अपना प्रभाव क्षेत्र बनाने में सक्रिय रहे हैं. वे अपने इलाकों में समानांतर प्रशासन चलाते हैं और पुलिस वनकर्मी सरकारी कर्मचारी उनके निशाने पर रहते हैं. अपने इलम में व जबरदस्ती आदिवासियों की भर्ती करते हैं और ट्रेनिंग कैम्प भी चलाते हैं. नक्सली कानून और संविधान को नहीं मानते और विकास नहीं होने देते. जंगल के चप्पे-चप्पे से वाकिफ नक्सलियों पर काबू पाने के प्रयास सफल नहीं हो पाए हैं. छत्तीसगढ़ में सल्वा जुडुम का प्रयोग विफल रहा.
राइफलवाले नक्सलियों के सामने धनुष-बाण वाले सल्वा जुडुम के आदिवासी कुछ नहीं कर पाए. इसी तरह सुपरकॉप कहलाने वाले केपीएस गिल को भी छत्तीसगढ़ में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई थी. सरकार ने नगर बटालियन व कोबरा कमांडो को भी आजमा कर देख लिया. नक्सलियों को जिस व्यक्ति के पुलिस का मुखविर होने का शक हुआ, उसकी निर्मम हत्या कर देते हैं. खुद को आदिवासियों का हितैषी बताने वाले अपने प्रभाव क्षेत्र में चलने वले उद्योगों से नक्सली कारोड़ों रुपए प्रोटेक्शन मनी वसूल करते हैं. नक्सली समस्या के राजनीतिक व सामाजिक पहलु भी हैं. जब ऐसा लगता है कि इन अराजक तत्वों पर कुछ काबू पा लिया गया है तभी वे हमला करके नई चुनौती दे देते हैं.