राष्ट्रीय मौद्रीकरण पाइपलाइन की सफलता को लेकर अर्थशास्त्रियों को गहरी शंका

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    जनता के खून-पसीने की कमाई से बनी हजारों अरब रुपए कीमत की सार्वजनिक संपत्ति को राष्ट्रीय मौद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) के नाम पर निजी क्षेत्र को किराए या लीज पर देकर 4 वर्षों में 6 लाख करोड़ रुपए जुटाने की दिशा में मोदी सरकार आगे बढ़ रही है. न केवल विपक्षी राजनीतिक दल, बल्कि विश्वविख्यात अर्थशास्त्री भी इसका विरोध कर रहे हैं. यह विरोध या आलोचना निराधार नहीं है. सरकार की नई मौद्रीकरण नीति के तहत निजी क्षेत्र को किराए या लीज पर हाईवे, रेलवे, बिजली का उत्पादन व वितरण, खनन, एयरपोर्ट, बंदरगाह, प्राकृतिक गैस पाइपलाइन, रेलवे, स्टेडियम, शहरी रियल एस्टेट दे दिए जाएंगे. इस नीति के खिलाफ कांग्रेस सहित प्रमुख विपक्षी पार्टियां व मजदूर संगठन लंबी लड़ाई की तैयारी में जुट गए हैं.

    राज्यों की मंजूरी जरूरी

    विश्व बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री रहे कौशिक बसु ने सरकार के इस कदम पर शंका जताते हुए महत्वपूर्ण सवाल उठाया है कि जब वे संसाधन व जमीनें राज्यों में हैं तो संघीय ढांचे के तहत केंद्र को उनसे मंजूरी लेना जरूरी होगा. क्या राज्य इसके लिए राजी होंगे? रेलवे, एयरपोर्ट, सड़कें, बड़े-बड़े कल-कारखानों के लिए जनता से सस्ते दर पर ली गई जमीनें निजी क्षेत्रों को किराए पर सौंपी जाएंगी तो उनके इस्तेमाल व निर्माण के बाद वापसी की क्या गारंटी होगी? बसु ने कहा कि यह रूस के ऑलीगार्क जैसा है जहां पूरे देश की संपत्तियां मुट्ठी भर लोगों के हाथों में चली गई थीं. बसु ने विनिवेश और मौद्रीकरण का फर्क बताते हुए कहा कि विनिवेश या डिसइन्वेस्टमेंट का अर्थ था- स्वामित्व दूसरे को सौंप कर छुट्टी पा लेना, जबकि मौद्रीकरण का मतलब लीज या किराए पर जनता की संपत्तियों को निजी क्षेत्र को सौंपना. जब सरकार की खरीदारों (लीज पर लेने वालों) से नजदीकी हो तो इसके परिणाम बुरे निकलेंगे.

    20 प्रतिशत रकम जुटाना भी मुश्किल

    कौशिक बसु के समान ही पूर्व वित्त सचिव सुभाषचंद्र गर्ग ने मोनेटाइजेशन स्कीम की सफलता को लेकर गहरी शंका जताई है. गर्ग ने तो यहां तक कह दिया कि मोदी सरकार नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन (एनएमपी) के तहत तय किए गए लक्ष्य की 20 प्रतिशत रकम भी नहीं जुटा पाएगी. उन्होंने कहा कि मेरा अनुमान है कि केंद्र सरकार अगले 4 वर्षों में अपने लक्ष्य की 10 फीसदी रकम जुटाने में सफल हो सकती है. यह रकम 60,000 करोड़ रुपए के करीब बैठती है. यदि किसी प्रकार सरकार अपने लक्ष्य की 20 प्रतिशत रकम भी जुटा पाती है तो उन्हें काफी खुशी होगी.

    एयरपोर्ट छोड़कर कहीं सफलता नहीं मिली

    सुभाषचंद्र गर्ग ने कहा कि 2019 में केंद्र सरकार ने एयरपोर्ट के मोनेटाइजेशन पर बहुत अच्छा काम किया. निजी क्षेत्र को विमानतल लीज पर दिए गए, जिनका चेहरा-मोहरा भी बदला लेकिन उसके बाद एक भी ट्रांजेक्शन नहीं हो पाया. हाईवे के बारे में सरकार को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी है. अब तक सिर्फ 5 पैकेज मिल पाए हैं. पिछले 5 वर्षों में इनमें से 2 पैकेज पर काम शुरू नहीं हो पाया. अन्य किसी मामले में सरकार को मोनेटाइजेशन में सफलता नहीं मिली है.

    राहुल ने आलोचना की

    कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार 70 वर्षों में जनता के पैसे से बनी संपत्तियों को अपने कुछ उद्योगपति मित्रों को उपहार में दे रही है. उन्होंने ‘इंडिया ऑन सेल’ हैशटैग से ट्वीट किया- ‘सबसे पहले ईमान बेचा और अब…! एनएमपी से कुछ कंपनियों का एकाधिकार हो जाएगा, जिस कारण देश के युवाओं को रोजगार नहीं मिल पाएगा. सरकार की यह घोषणा युवाओं के भविष्य पर आक्रमण है. कृपया अपना खयाल रखें क्योंकि सरकार बिक्री में व्यस्त है.’