जरांगे का वोल्टेज ‘हाई’, सरकार का ‘टाइम-पास’

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  • मराठा आरक्षण पर लगातार फंसती जा रही महायुति

संजय तिवारी

महाराष्ट्र की जनता के लिए कई राजनीतिक दांव-पेंच से भरे इस वर्ष का ईयर एंड भी अनिश्चितता से भरा जाने वाला है. राज्य विधानमंडल का शीतसत्र अपने नंबर की बदौलत मनमाफिक कराने के बाद भी महायुति के 3 प्रमुख धुरंधरों को चैन की नींद आ जाएगी, ऐसा बिल्कुल नहीं लगता. मराठा आरक्षण पर मनोज जरांगे पाटिल की खुली चेतावनी के बाद यह साफ है कि वो सरकार को हैपी न्यू ईयर बोलने का मौका देने के मूड में तो कदापि नहीं हैं. इसके विपरीत मराठा मुख्यमंत्री के रूप में एकनाथ शिंदे, गृहमंत्री के रूप में देवेन्द्र फडणवीस और मराठा गढ़ को बचाने के लिए अपना सर्वस्व लगा देने वाले दूसरे मुख्यमंत्री अजीत पवार की अग्निपरीक्षा 24 दिसंबर से शुरू होने जा रही है. 24 दिसंबर को जरांगे अपना वोल्टेज और हाई करने वाले हैं और उन्होंने साफ तौर पर महायुति सरकार ने ‘टाइमपास’ के लिए जो

टाइम मांगा है, उसे देने से इंकार कर दिया, मराठा आरक्षण का विषय राज्य की राजनीति में दशकों बाद काफी पेचीदगी खड़ी करने जा रहा है. 2014 से 2019 में फडणवीस के रूप में एक ब्राह्मण मुख्यमंत्री की परीक्षा लेने के लिए निकाले गए 45 महामोर्चे के बाद भी कभी हिंसा की नौबत नहीं आई. उस समय तो फडणवीस सरकार ने इस तरह का आरक्षण का फार्मूला निकाला था, जिसे हाई कोर्ट ने भी हरी झंडी दे दी थी. अब मराठा मुख्यमंत्री के रहते हुए मराठाओं के हिंसक मोर्चे निकल रहे हैं. जैसे-तैसे राज्य सरकार ने हिंसा पर अंकुश लगाया है, लेकिन जरांगे और मराठा समाज कोई समझौते को तैयार नहीं दिख रहा है. जरांगे ने 24 दिसंबर की जो डेडलाइन दी थी, उस पर 17 दिसंबर तक जवाब मांग कर सिरदर्द बढ़ा दिया था. सरकार ने अपने दो संकटमोचक मंत्रियों को मनाने भेजा, तो भी वे नहीं माने.

विशेष अधिवेशन पर आचार संहिता का ग्रहण

जरांगे पाटिल मुख्यमंत्री शिंदे के जवाब पर सवाल उठा रहे हैं. उनका सवाल है कि फरवरी में मराठा आरक्षण के लिए विधानमंडल का विशेष सत्र बुलाने की जरूरत ही क्या है? यदि सरकार की नीयत साफ है तो शीतकालीन सत्र को ही 2-4 दिन बढ़ाकर इस पर फैसला किया जा सकता है, जरांगे का कहना है कि फरवरी में लोकसभा चुनाव की आचार संहिता भी लग जाएगी, ऐसे में विशेष अधिवेशन कैसे हो सकेगा? वो सरकार को समय देने के मूड में नहीं हैं और सरकार है कि तारीख पर तारीख मांगती जा रही है. सरकार के पास वैसे इस मुद्दे को हल करने के लिए कोई बहुत ठोस फार्मूला बचा भी नहीं है. सभी जानते हैं कि किसी भी हालत में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण को बढ़ाया नहीं जा सकता. उसमें भी 10 फीसदी आरक्षण आर्थिक रूप से पिछड़ों को अतिरिक्त दिया जा चुका है. मतलब अब 60 फीसदी आरक्षण की सीमा को लांघना किसी के बस की बात नहीं है. सरकार और जरांगे भी सभी बातों से वाकिफ हैं, लेकिन वो जनता के सामने सच बोलने से डर रहे हैं.

ओबीसी को हाथ नहीं लगा सकते.

जरांगे इस जिद पर अड़े हैं कि उन्हें ओबीसी आरक्षण में हिस्सेदारी दी जाए, ओबीसी आरक्षण में वैसे ही इतने ज्यादा लोग हैं, वहां कोई स्कोप ही नहीं है. इसके अलावा मराठाओं को आरक्षण मिल सके, ऐसा कोई रास्ता दिखाई नहीं देता. सरकार भी जानती है कि ओबीसी आरक्षण को वह किसी भी सूरत में हाथ नहीं लगा सकती. ओबीसी समाज वैसे ही मोर्चा खोलकर बैठा है. छगन भुजबल तो अपनी ही सरकार को खुली चुनौती दे रहे हैं. मराठा और ओबीसी के बीच बैर बढ़ता जा रहा है. जल्दी ही इसे रोका नहीं गया तो राज्य में सामाजिक वैमनस्य का नया दौर शुरू हो जाएगा. कुछ-कुछ वैसा ही दौर, जैसा मंडल-कमंडल के माहौल में हुआ था. जो कुछ भी होगा, राज्य की कानून और व्यवस्था के लिए बहुत अच्छा नहीं होगा. सरकार को जरांगे ने समय नहीं दिया तो नेताओं का समय ‘खराब’ हो जाएगा, इसका सीधा असर लोकसभा चुनाव के गणित पर भी पड़ेगा. आखिर सबसे बड़ा खामियाजा भाजपा को हो भुगतना पड़ेगा, इसलिए इसकी चिंता भी उसे ही करनी पड़ेगी.