क्या तीसरी बड़ी इकोनामी बन पाएगा भारत

Loading

क्या आनेवाले कुछ ही वर्षों में भारत अमेरिका और चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन पाएगा? सहसा विश्वास नहीं होता लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एलान किया है कि उनके तीसरे कार्यकाल में भारत इस गौरवपूर्ण उपलब्धि को हासिल कर लेगा. न केवल बीजेपी बल्कि अधिकांश देशवासी मोदी की गारंटी पर आंख मूंदकर भरोसा करने लगे हैं.

यूं तो मोदी के पहले नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढि़या ने भी भविष्यवाणी की थी कि भारत 2026 तक दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बन जाएगा. अवश्य ही यह संभावना कुछ तर्कों के आधार पर व्यक्त की गई होगी लेकिन भारत की बहुत बड़ी आबादी व्यापक बेरोजगारी तथा ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों के पिछड़ेपन को देखते हुए कहीं लोग इस घोषणा को झुनझुना पकड़ाने जैसा न मान लें. कितने ही लोग इसे कल्पना की उड़ान मान सकते हैं क्योंकि भविष्य हमेशा अनिश्चित होता है.

बाढ़, भूकंप, सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं, सूखा पड़ना या अतिवृष्टि जैसे संकट पर किसी का नियंत्रण नहीं है. कोरोना महामारी क्या बताकर आई थी? इन बातों के बावजूद पाजिटिव या सकारात्मक सोच रखना अच्छी बात है. भारत इस समय ब्रिटेन को पछाड़कर विश्व की 5वीं बड़ी इकोनॉमी बना हुआ है. अब यदि वह आगामी कुछ वर्षों में जर्मनी और जापान को पछाड़ दे तो विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. इसके लिए दूरदृष्टि व संगठित प्रयासों के अलावा बड़े पैमाने पर निर्माण व सेवा क्षेत्र के विस्तार की भी आवश्यकता होगी. निवेश के लिए अत्यंत अनुकूल और विश्वसनीय माहौल भी बनाना होगा.

स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया को सिर्फ नारों तक सीमित रखने से काम नहीं चलेगा. चीन यदि विश्व की दूसरे नंबर की बड़ी अर्थव्यवस्था बना है तो उसकी वजह बिल्कुल अलग है. चीन काफी कम लागत में मैन्युफैक्चरिंग कर अपना माल दुनिया के बाजारों में डम्प करता है. वहां श्रमिकों को बेहद कम पारिश्रमिक देकर घंटों काम कराया जाता है. किसी श्रमिक आंदोलन, हड़ताल या अदालत का दरवाजा खटखटाने की वहां कोई गुंजाइश नहीं है. वहां कम्युनिस्ट पार्टी का तानाशाही शासन है. उद्योग स्थापित करने के लिए वहां एनओसी नहीं लेना पड़ता. किसी भी बस्ती को रातोंरात खाली करा लिया जाता है. लोकतांत्रिक भारत में ऐसा नहीं हो सकता. फिर भी जहां चाह वहां राह का दृष्टिकोण रखकर आगे बढ़ा जा सकता है.

चुनौतियां कम नहीं हैं

देश रक्षा संबंधी आवश्यकताओं से जूझ रहा है. चीन और पाकिस्तान की बदनीयत देखते हुए बड़ा रक्षा बजट और तैयारियों पर काफी धन खर्च होता है. विकास अपनी जगह है लेकिन राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा हमारी प्राथमिकता है. अभी भी दुर्गम और आदिवासी क्षेत्रों में पिछड़ापन है जिनका विकास जरूरी है. जब बजट की बड़ी रकम कल्याणकारी योजनाओं में खप जाएगी तो अर्थव्यवस्था को कैसे बढ़ावा मिलेगा. देश की 80 करोड़ आबादी को मुफ्त अनाज देना पड़ रहा है और यह योजना अगले 5 वर्षों के लिए विस्तारित की गई है. प्राय: हर वर्ष होनेवाले कोई न कोई चुनाव अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ाते हैं.

क्या उपभोक्ता प्रधान इकॉनामी को विनिर्माण प्रधान अर्थव्यवस्था में बदला जा सकता है? अमेरिका की अर्थव्यवस्था उपभोक्ता प्रधान है लेकिन डॉलर शक्तिशाली होने से उसे फर्क नहीं पड़ता. भारत के सामने प्रश्न है कि वह अपनी इकोनामी को और उन्नत करने के लिए चीन या अमेरिका में से किसका अनुकरण करे. बेहतर होगा कि वह जापान की राह चले जिसने द्वितीय विश्व युद्ध में तबाह होने के बाद कठिन परिश्रम से अपनी इकोनॉमी को संवारा. हमारी युवा शक्ति की मेहनत व प्रतिभा समुचित उपयोग कर अर्थव्यवस्था और और उन्नत करने का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.