सरकार बनाने का मोदी का ऑफर ठुकराया था, शरद पवार के बड़े बोल

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    मोर अपने सुंदर पंखों को देखकर आत्ममुग्ध होता है लेकिन वह अपनी कर्कश वाणी और कुरूप पैरों की ओर ध्यान देना पसंद नहीं करता. कुछ राजनेता भी ऐसे होते हैं जो अपनी हैसियत को किसी कुतुबमीनार से कम नहीं समझते लेकिन अपनी न्यूनताओं पर गौर करना नहीं चाहते.

    इनका कोई सिद्धांत नहीं रहता, बल्कि वे मौकापरस्ती और अपना उल्लू सीधा करने में विश्वास रखते हैं. उनका रवैया कुछ ऐसा रहता है कि खाओ खिचड़ी और बताओ खीर! वे बात-बात में लंबी हांकते हैं. बढ़ती उम्र और गिरते स्वास्थ्य के बावजूद उनकी महत्वाकांक्षा कम नहीं होती.

    एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में महाराष्ट्र में बीजेपी-एनसीपी की सरकार बनाने का प्रस्ताव रखा था. तब उन्होंने दिल्ली में प्रधानमंत्री कार्यालय जाकर स्पष्ट रूप से कह दिया था कि आपकी और हमारी विचारधारा में अंतर है, इसलिए सरकार बनाना संभव नहीं होगा. 

    पवार की बात अपनी जगह है लेकिन मोदी ही बता सकेंगे कि 2019 में चुनाव के बाद जब करीब डेढ़ महीने अनिश्चितता की स्थिति बनी रही, तब उन्होंने पवार के पास ऐसा कोई ऑफर भेजा था या नहीं! वास्तविकता यह है कि एनसीपी कभी भी महाराष्ट्र में अपने दम पर सरकार नहीं बना पाई. पुणे, बारामती व पश्चिम महाराष्ट्र छोड़ दिया जाए तो राज्य के कुछ हिस्सों में ही एनसीपी सीमित रही है. वह राज्य स्तर पर प्रभावशाली नहीं है. महाराष्ट्र में बीजेपी, शिवसेना और कांग्रेस के अपने प्रभाव क्षेत्र हैं जहां एनसीपी की दाल नहीं गलती.

    अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के नेता अपने दम पर सरकार बनाते हैं

    एनसीपी की तुलना में अन्य राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं में इतना दमखम है कि वे अपने बलबूते सरकार बनाते हैं, उन्हें कोई बहुदलीय आघाड़ी बनाने की जरूरत नहीं पड़ती. बंगाल में ममता बनर्जी का जबरदस्त वर्चस्व है. विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने मोदी और अमित शाह की सारी कोशिशों पर पानी फेर दिया था. 

    लेफ्ट का पहले ही सफाया कर चुकी ममता ने बीजेपी की भी दाल नहीं गलने दी. इसी प्रकार आंध्रप्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस, तेलंगाना में चंद्रशेखर राव की टीआरएस, ओडिशा में नवीन पटनायक की बीजद और तमिलनाडु में डीएमके नेता एमके स्टालिन अपने दम पर सरकार बनाते हैं. इसके विपरीत शरद पवार महाराष्ट्र में ऐसा नहीं कर पाए.

    राष्ट्रीय राजनीति में NCP की कोई पहचान नहीं

    एनसीपी ने महाराष्ट्र के अलावा कुछ अन्य राज्यों के चुनाव में भी अपने उम्मीदवार उतार कर देख लिए लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिल पाई. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए किसी भी पार्टी को 6 राज्यों में अपनी उपस्थिति दिखानी पड़ती है. 

    महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्र छोड़कर वह अन्यत्र प्रभावी नहीं हो पाई. इस लिहाज से पवार अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं जितने सफल नहीं हो पाए. वसंतदादा पाटिल की सरकार को गिराकर पहली बार महज 38 वर्ष की उम्र में मुख्यमंत्री बने शरद पवार को सभी बड़ी पार्टियां विश्वसनीय नहीं समझतीं.

    कांग्रेस से विरोध, फिर उसी की सरकार में केंद्रीय मंत्री बने

    सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर पवार ने कांग्रेस तोड़ने की कोशिश की थी लेकिन तब उनका साथ केवल पीए संगमा और तारिक अनवर ने दिया था. पवार ने कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी बनाई, जिसका प्रभाव क्षेत्र महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों तक सीमित होकर रह गया. 

    पवार एक समय प्रधानमंत्री पद की होड़ में थे लेकिन नरसिंहराव पीएम बने तथा पवार और अर्जुन सिंह की चल नहीं पाई. बाद में यही शरद पवार यूपीए की मनमोहन सरकार में 10 वर्ष केंद्रीय मंत्री रहे जिसका रिमोट कंट्रोल सोनिया गांधी के हाथ में था. उस समय उनका कांग्रेस विरोध गायब हो गया था, जबकि कांग्रेस की कर्ताधर्ता सोनिया ही थीं.

    बयान से भड़की BJP

    पवार के इस बयान से बीजेपी भड़क उठी कि पीएम मोदी की इच्छा थी कि बीजेपी और एनसीपी मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाएं लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया था. बीजेपी के प्रवक्ता केशव उपाध्ये ने कहा कि पवार और विश्वसनीयता दोनों के बारे में क्या कहें? 

    एक अन्य ट्वीट में उपाध्ये ने लिखा कि जब भनक लगने पर वसंतदादा पाटिल ने मंत्रालय में ही पवार से पूछा था कि क्या वे बगावत करने जा रहे हैं? तब पवार ने भरोसा दिलाया था कि ऐसा कुछ नहीं होनेवाला लेकिन दूसरे ही दिन उन्होंने वसंतदादा पाटिल की सरकार गिरा दी थी.