आघाड़ी में कांग्रेस को नकारने का दर्द

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    महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार में तीसरे नंबर की पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस की महत्वाकांक्षाएं बहुत अधिक हैं. विकास फंड के आवंटन में भेदभाव को लेकर कांग्रेस प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से भेंट कर अपनी शिकायत पेश की. गत वर्ष दिसंबर में यह खुलासा हुआ था कि आघाड़ी सरकार में एनसीपी भले ही नंबर 2 की पोजीशन पर है लेकिन विकास फंड लेने के मामले में सबसे आगे है. इसके बाद कांग्रेस का नंबर आता है. अपना मुख्यमंत्री होने के बावजूद शिवसेना को सबसे कम फंड मिला.

    विधानसभा अध्यक्ष पद से हटने के बाद नाना पटोले को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर फ्री हैंड दिया गया. उन्हें राज्य में पार्टी को नई ऊर्जा और ताकत देने की जिम्मेदारी सौंपी गई. इसके बावजूद पार्टी चलाना एक बड़ी सर्कस है जिस पर तंबू तानने का खर्च भी आता है. वह भी पटोले को करना है. कांग्रेस हाईकमांड के पास इतना वक्त नहीं है कि सिर्फ महाराष्ट्र की चिंता करे.

    अब आघाड़ी हाईकमांड से भी स्वीकृति लेनी होगी

    बहुत मशक्कत के बाद पटोले अपनी पार्टी हाईकमांड से स्वीकृति या एप्रूवल लेकर आए. यह भी उनके लिए एक चुनौती थी. अब इसके बाद दूसरी चुनौती यह है कि पार्टी हाईकमांड से जो अनुमति लेकर आए हैं, उसे आघाड़ी के हाईकमांड से भी एप्रूव कराना है. यह उम्मीद करना बेकार है कि आघाड़ी का हाईकमांड राज्य में कांग्रेस को मजबूत होने देगा क्योंकि यदि कांग्रेस मजबूत हुई तो एनसीपी व शिवसेना कमजोर हो जाएंगे.

    विधानसभा अध्यक्ष पद का मुद्दा बकाया

    लंबे समय से महाराष्ट्र में विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव का मुद्दा बकाया है जिसके लिए कांग्रेस की दावेदारी है. जिस प्रकार आघाड़ी ने सरकार बनाते समय पूरे 171 विधायकों की ताकत दिखाई थी, वैसी ही एकजुटता विधानसभा अध्यक्ष चुनाव के लिए भी दिखानी होगी. आघाड़ी ऐसा करना टाल रही है क्योंकि कार्यकारी अध्यक्ष से तो काम चल ही रहा है. उसका रवैया है कि कौन सिर्फ कांग्रेस के लिए पचड़े में पड़े? एनसीपी और शिवसेना हरगिज नहीं चाहते कि राज्य में कांग्रेस का कद बढ़े. ऐसा करने से इन पार्टियों का वर्चस्व कम होगा.

    फेरबदल की गुंजाइश नहीं

    कांग्रेस अधिक मंत्री पद चाहती है लेकिन कांग्रेस के लिए मंत्रिमंडल में फेरबदल करने पर एनसीपी और शिवसेना भी अपना दावा ठोकेंगी. आघाड़ी सरकार में कांग्रेस के 11 मंत्री हैं जिनमें से कोई भी अपना मंत्री पद किसी अन्य के लिए छोड़ना नहीं चाहता, इसलिए फेरबदल का सवाल ही नहीं उठता. ऐसी स्थिति देखते हुए मधुमक्खी के छत्ते को कौन हाथ लगाए? उपर से बीजेपी तमाशा देखने के लिए बैठी है.

    उसके नेता बार-बार सरकार के गिरने की भविष्यवाणी कर रहे हैं और इस ताक में हैं कि आघाड़ी की तीनों पार्टियां आपस में लड़ जाएं और ऐसी फूट का उसे लाभ मिले. आघाड़ी इसे भली भांति जानती है इसलिए बीजेपी को खेलने का कोई मौका देना नहीं चाहती.