SP's victory in Yogi's state, message of assembly by-elections

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देश के 6 राज्यों की 7 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों के नतीजे भले ही मिले-जुले प्रतीत होते हों, लेकिन ‘इंडिया’ गठबंधन बनने के बाद और इस साल 5 राज्यों तथा अगले वर्ष लोकसभा चुनाव से पहले आए इन नतीजों के सुस्पष्ट राजनीतिक संदेश हैं. सरसरी तौर पर देखें, तो 7 में से 4 सीटें ‘इंडिया’ के खाते में गई हैं, जबकि भाजपा ने 3 सीटें जीती हैं. इन 7 में से उत्तर प्रदेश की घोसी पर सबकी निगाहें थीं, जिसे सपा ने अपने पास बरकरार रखा है, इसके बावजूद दलबदलू और अवसरवादी दारासिंह चौहान की बड़े अंतर से हार भाजपा के लिए चिंताजनक तो है ही. खासकर इसलिए भी कि घोसी के उपचुनाव को ‘इंडिया’ गठबंधन और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई बताया जा रहा था.

दलबदलुओं को झटका

गत वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर विजयी उम्मीदवार दारासिंह ने दलबदल कर बीजेपी में प्रवेश किया. इस कारण घोसी सीट पर उपचुनाव कराना पड़ा. जनता ने दलबदलू उम्मीदवार को नकार दिया. पिछली बार सपा ने यह सीट 22,000 वोटों से जीती थी लेकिन उपचुनाव में सपा उम्मीदवार सुधाकर सिंह 40,000 से अधिक मतों से विजयी हुए. लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में उपचुनाव का यह नतीजा भाजपा के लिए सुखद नहीं है. हालांकि भाजपा के पास 3 सीटें थीं, और उसने 3 ही सीटें जीती हैं. त्रिपुरा की धनपुर सीट पर तो उसने अपना कब्जा बरकरार रखा ही, बॉक्सनगर में माकपा को उसने करीब 30,000 वोटों के भारी अंतर से हराया. ऐसे में, त्रिपुरा की 60 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा की सीटें बढ़कर 33 हो गई हैं. इससे साफ है कि 6 महीने पहले त्रिपुरा की सत्ता में लौटी भाजपा का जलवा बरकरार है. ऐसे ही, उत्तराखंड की बागेश्वर सीट पर कांग्रेस के साथ कड़ी टक्कर के बावजूद उसने इस पर कब्जा जारी रखा है. लेकिन बंगाल में जलपाईगुड़ी की धुपगुड़ी सीट पर भाजपा की हार लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए बड़ा झटका है. जबकि तृणमूल की जीत गठबंधन का उत्साह बढ़ाने वाली है. विपक्षी गठबंधन के झारखंड मुक्ति मोर्चा ने डुमरी सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा है, तो केरल की पुथपुल्ली सीट पर यूडीएफ के चांडी ओमान ने भारी अंतर से जीतकर अपनी सीट बचा ली है. इस लिहाज से देखें, तो गठबंधन के प्रदर्शन को संतोषजनक कहा जा सकता है, लेकिन उपचुनावों में उनकी मतभिन्नता भी सामने आई है. जैसे, घोसी में सपा को कांग्रेस का समर्थन था, लेकिन बागेश्वर में कांग्रेस के मुकाबले में होने के बावजूद सपा ने अपने प्रत्याशी उतार दिए थे. इससे भी यह पता चलता है कि लोकसभा चुनाव में सीटों पर सहमति बनाना विपक्षी गठबंधन के लिए कितना चुनौती भरा होने वाला है.

2014 और 2019 में यूपी ने बीजेपी के पक्ष में कौल दिया था. एक विधानसभा उपचुनाव के नतीजे से राजनीतिक चित्र बदलने का दावा नहीं किया जा सकता परंतु बसपा का कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं होने और कांग्रेस का समर्थन मिलने से सपा को फायदा मिला. आगे के चुनाव में बीजेपी का प्रयास होगा कि त्रिकोनी मुकाबला हो. मायावती की बसपा चुनाव में उतरी तो ‘इंडिया’ के वोट कटेंगे और बीजेपी की जीत का गणित मजबूत होगा.

ममता का हौसला बढ़ा

बंगाल के धुपगुड़ी के बीजेपी विधायक का निधन होने से रिक्त सीट पर बीजेपी ने कारगिल में शहीद हुए सैनिक की पत्नी को उम्मीदवारी देकर सहानुभूति का लाभ उठाना चाहा था लेकिन टीएमसी ने यह सीट 4,309 मतों से जीत ली. इस जीत से ममता बनर्जी का हौसला बढ़ा है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बंगाल की 42 में से 18 सीटें जीती थीं. उपचुनाव का नतीजा बीजेपी की चिंता बढ़ानेवाला है.