बंगाल में हर चुनाव जीतते जा रही TMC, ममता पड़ रहीं BJP पर भारी

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    स्पष्ट है कि बीजेपी अजेय और सर्वमान्य पार्टी नहीं है. हिंदी भाषी प्रदेशों में उसका प्रभाव है लेकिन बंगाल और दक्षिण भारतीय राज्यों में उसकी दाल नहीं गलती. कर्नाटक का अपवाद छोड़ दें तो तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल और आंध्रप्रदेश में भी बीजेपी प्रभावशून्य है. बंगाल विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पूरी ताकत लगाकर देख ली लेकिन टीएमसी को नहीं उखाड़ पाए. 8 चरणों में चुनाव और ढेर सारी रैलियां करने के बाद भी बीजेपी को मायूस होना पड़ा. जो लोग टीएमसी से बीजेपी में आए थे, उनमें से अधिकांश अपनी मूल पार्टी में वापस चले गए. 

    अभी हुए बंगाल नगर निगम चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने चारों नगर निगमों- बिधाननगर, आसनसोल, सिलीगुड़ी और चंदननगर को जीत लिया. यह ऐसी वैसी नहीं, बल्कि प्रचंड जीत है जिसमें बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया. टीएमसी ने बिधाननगर में 41 में से 39 सीटें जीतीं, जहां बीजेपी और सीपीएम खाता भी नहीं खोल पाईं. चंदननगर में टीएमसी ने 32 में से 31 सीटें जीतीं. सिलीगुड़ी में 47 में से 37 सीटें जीतीं जबकि बीजेपी को सिर्फ 5 सीटें मिल पाईं. आसनसोल में टीएमसी ने 66 तथा बीजेपी ने 5 सीटें जीतीं. इसके पहले उपचुनाव व पंचायत चुनाव में भी टीएमसी ने अपना वर्चस्व सिद्ध कर दिया था.

    क्षेत्रीय पार्टियां साथ आएंगी

    विपक्षी पार्टियों के 3 मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, के. चंद्रशेखर राव और एमके स्टालिन दिल्ली में बैठक करने जा रहे हैं जहां वे राष्ट्र के संघीय ढांचे पर चर्चा करेंगे. ममता बनर्जी ने क्षेत्रीय पार्टियों की एकजुटता का संकेत देते हुए कहा कि कांग्रेस अपने रास्ते चल सकती है, हम अपने रास्ते चलेंगे. बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने देश के संविधान को ध्वस्त कर दिया है. मैंने तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन और तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर से बात की. 

    हम एकसाथ मिलकर संघीय ढांचे (फेडरलिज्म) की रक्षा करने को कोशिश कर रहे हैं. इस तरह टीएमसी, डीएमके और टीआरएस एक प्लेटफार्म पर आने की तैयारी में हैं. ममता तो बंगाल में बीजेपी को धूल चटाती रही हैं. के.चंद्रशेखर राव भी टकराव के मूड में हैं क्योंकि तेलंगाना में बीजेपी मजबूत विपक्ष बनती जा रही है. स्टालिन ने ‘नीट’ परीक्षा विरोधी भूमिका अपना रखी है.

    टकराव के अनेक मुद्दे

    केंद्र व राज्यों के बीच टकराव के अनेक मुद्दे हैं. राज्यों का आरोप है कि केंद्र व राज्यों के बीच राजस्व के बंटवारे का वित्त आयोग का जो फार्मूला है, वह अधिभार व उपकरों के मामले में केंद्र को लाभ पहुंचाने वाला है. पहले लॉकडालन से राज्यों का कर संग्रह या राजस्व घट गया था, तब केंद्र ने राज्यों की कोई मदद नहीं की. अब केंद्र सरकार आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की तैनाती की प्रणाली अपनी सुविधा और फायदे के लिए बदलना चाहती है.

    केंद्र में अधिकारियों की कमी बताकर वह राज्यों से काबिल अधिकारियों को वापस बुलाना चाहती है. इसमें राजनीति भी देखी जा रही है. इस दौरान विपक्ष एमएसपी जैसे मुद्दे पर किसानों का साथ दे रहा है. केंद्रीय योजनाओं को लागू करने के मुद्दे पर भी राज्य व केंद्र में खींचतान है. बीजेपी अपने शासित प्रदेशों को झुकता माप दे रही है. विपक्ष को नेतृत्व देने की बात जब राष्ट्रीय स्तर पर उठेगी तो ममता बढ़चढ़ कर दावा कर सकती हैं क्योंकि बंगाल में वे बीजपी पर भारी पड़ती रही हैं.