हर वक्त PM पद की मंशा रखनेवाले पवार, राष्ट्रपति पद के लिए क्यों मुकरे?

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    एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार 81 वर्ष के हो चुके हैं.

    के लिए उनके सामने स्पष्ट स्थिति है कि अभी नहीं तो कभी नहीं! जब विपक्षी पार्टियां उन्हें इस पद का उम्मीदवार बनाना चाहती हैं तो फिर वे इनकार क्यों कर रहे हैं? जिंदगी में अवसर बार-बार नहीं आते! 17 से अधिक विपक्षी पार्टियां इस बात पर सहमत थीं कि विपक्ष की ओर से एक संयुक्त उम्मीदवार खड़ा किया जाए. 

    बैठक में शामिल सभी दलों ने एकमत से इस पद के लिए संयुक्त उम्मीदवार के रूप में शरद पवार का नाम लिया. इसके बावजूद पवार ने उम्मीदवार बनने के लिए अनिच्छा जताई. इसकी वजह हो सकती है कि वह सक्रिय राजनीति छोड़ने के पक्ष में नहीं हैं और राष्ट्रपति बनने वाले व्यक्ति को सक्रिय राजनीति से अलिप्त हो जाना पड़ता है. दूसरी वजह यह हो सकती है कि पवार को चुनाव में हार का खतरा नजर आ रहा होगा और इस तरह का अपयश वे लेना नहीं चाहते. 

    तीसरी वजह यह होगी कि पवार चाहते होंगे कि राजनीति में उनकी सीनियारिटी देखते हुए उन्हें सर्वसम्मति से राष्ट्रपति बनाया जाए, बीजेपी उनके खिलाफ उम्मीदवार खड़ा न करे. ऐसा हो नहीं सकता. इसलिए वे मनाने पर भी विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार बनने के लिए राजी नहीं हो रहे हैं. शायद उन्होंने वोटों का गणित अच्छी तरह लगा लिया होगा.

    पवार विगत कितने ही दशकों से प्रधानमंत्री पद के लिए लालायित रहे हैं. राजीव गांधी की हत्या के बाद पीवी नरसिंहराव, अर्जुन सिंह और शरद पवार के बीच पीएम पद के लिए होड़ लगी थी. डिनर पार्टियां दी जाने लगी थीं. लेकिन अंतत: नरसिंहराव ने बाजी मार ली. सोनिया गांधी की कांग्रेस पर मजबूत पकड़ के चलते पवार ने अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस बनाई. केवल पीए संगमा और तारिक अनवर ने उनका साथ दिया था. 

    बाद में विदेशी मूल का मुद्दा अपने आप ठंडा हो गया और शरद पवार, मनमोहन सिंह की सरकार में 10 वर्ष तक कृषि मंत्री बने रहे. सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले यूपीए में पवार की पार्टी एनसीपी शामिल रही. अब भी यदि पवार राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बनना चाहें तो कांग्रेस का उनको पूरा समर्थन है. टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी द्वारा बुलाई गई विपक्षी पार्टियों की बैठक में कांग्रेस की ओर से मल्लिकार्जुन खड़गे उपस्थित थे.

    विपक्ष में पूरी तरह एकता नहीं

    विपक्षी पार्टियों की संयुक्त बैठक में ममता बनर्जी ने 22 दलों को बुलाया था लेकिन इसमें टीआरएस, बीजद, अकाली दल और टीडीपी से कोई नहीं आया. कांग्रेस के कारण टीआरएस बैठक से दूर रही. टीआरएस ने कहा कि वह कांग्रेस के साथ मंच साझा नहीं कर सकती, उम्मीदवार तय होने के बाद वह इस पर विचार करेगी. एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि हमें बैठक में बुलाया ही नहीं गया था.

    विपक्षी दलों की असहमति से बीजेपी खुश

    बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए के पास 48 प्रतिशत वोट हैं. साथ ही उसे वाईएसआर कांग्रेस व बीजद का समर्थन मिलने की उम्मीद है. ममता की बुलाई बैठक में ‘आप’ के नहीं जाने से भी बीजेपी खुश है. टोह तो बीजेपी भी ले रही है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आम राय बनाने के लिहाज से पवार, ममता, खड़गे, अखिलेश यादव, बसपा प्रमुख मायावती के अलावा नवीन पटनायक व जगनमोहन रेड्डी से बात की और राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए सुझाव मांगा. इस पर विपक्षी नेताओं ने ठंडा रुख अपनाते हुए कहा कि पहले बीजेपी नाम बताए, तब हम सुझाव देंगे.

    शरद पवार के इनकार करने के बाद ममता बनर्जी ने बंगाल के पूर्व गवर्नर गोपालकृष्ण गांधी व जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के नाम सुझाए. गोपालकृष्ण गांधी, महात्मा गांधी के पड़पोते हैं. इनके अलावा गुलाम नबी आजाद व यशवंत सिन्हा के नाम भी चर्चा में हैं. गोपालकृष्ण गांधी ने कहा कि मेरा अभी से इस मामले में प्रतिक्रिया व्यक्त करना अपरिपक्वतापूर्ण होगा.