क्या कुछ असरकारक होगा अन्ना हजारे का आंदोलन

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    अपनी 84 वर्ष की आयु में भी समाजसेवी अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का जोश कम नहीं हुआ है. वह ऐसे करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं जो चाहते हैं कि देश की प्रगति को धुन की तरह खोखला करने वाला भ्रष्टाचार मिट जाए. जब ईमानदार लोग विश्व के भ्रष्ट देशों की सूची में भारत का नाम देखते हैं तो उनका खून खौल उठता है. क्या हमने आजादी इसीलिए पाई थी कि राजनीति से लेकर प्रशासन तक भ्रष्ट तत्वों की घुसपैठ हो जाए? हाल ही में खुलासा हुआ कि एंटी करप्शन ब्यूरो की 44 भ्रष्ट सरकारी विभागों की लिस्ट में महाराष्ट्र का राजस्व विभाग पहले क्रमांक पर है और दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र पुलिस है.

    खून-पसीना बहाकर खेती करने वाले अन्नदाता किसानों से भी रिश्वत वसूल करने के बाद ही बैंक उनको राहत राशि का चेक देते हैं, अन्यथा रोककर रखते हैं. भ्रष्टाचार सर्वत्र व्याप्त है. शिक्षा विभाग, वन विभाग, सार्वजनिक निर्माण विभाग, पंचायत समिति में भ्रष्टाचारियों और रिश्वतखोरों की जबरदस्त पैठ है.

    आंदोलन की उपज

    2011 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में जनलोकपाल की मांग करते हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन हुआ था. तब उम्मीद जगी थी कि काफी हद तक करप्शन पर अंकुश लग जाएगा. हजारे के अनशन से प्रभावित लोगों ने ‘मैं भी अन्ना’ लिखी हुई टोपियां पहनी थीं. अन्ना के दिल्ली में किए गए अनशन में भारी जनसमूह उमड़ पड़ा था. अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, किरण बेदी आदि अन्ना आंदोलन की ही उपज थे. यद्यपि अन्ना हजारे (वास्तविक नाम किसन बाबूराव हजारे) एक समय भारतीय सेना में ड्राइवर थे लेकिन जनरल वीके सिंह भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में अन्ना के अनुयायी बने.

    अन्ना के आंदोलन की वजह से ही 2014 में बीजेपी के केंद्र की सत्ता में आने का रास्ता सुगम हुआ था. मोदी सरकार ने लोकपाल की नियुक्ति को लंबे समय तक लटकाकर रखा था. सरकार की दलील थी कि लोकपाल की नियुक्ति करने वाले पैनल में प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस तो हैं लकिन विपक्ष का अधिकृत नेता कोई नहीं है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इतनी कम सीटें मिली थीं कि विपक्ष के नेता का आधिकारिक दर्जा नहीं मिल पाया था. अन्ना की मांग केंद्र में अधिकारसंपन्न लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त नियुक्ति की थी. उनका स्वप्न पूरा नहीं हो पाया. कोई भी सरकार अपने से ज्यादा शक्तिशाली व अधिकारसंपन्न लोकपाल नियुक्त नहीं करेगी.

    विलंब को लेकर चेतावनी

    अन्ना हजारे ने लोकायुक्त कानून में विलंब को लेकर चेतावनी दी कि महाराष्ट्र सरकार अगस्त तक यह कानून बनाए, नहीं तो पूरे राज्य में आंदोलन चलाया जाएगा. उन्होंने याद दिलाया कि 2019 में देवेंद्र फडणवीस सरकार के समय उन्होंने आंदोलन किया था. तब सीएम के लिखित आश्वासन दिए जाने के बाद कि सरकार मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति बनाने को तैयार है, उन्होंने आंदोलन वापस ले लिया था. देश के कुछ राज्यों ने लोकायुक्त कानूनों को मार्गदर्शक सिद्धांतों के अनुसार अधिसूचित कर दिया है लेकिन महाराष्ट्र में अभी तक ऐसा नहीं किया गया. या तो राज्य सरकार कानून लागू करे या सत्ता से हट जाए.

    राष्ट्रीय लोक आंदोलन

    अन्ना ने अपने नए संगठन ‘राष्ट्रीय लोक आंदोलन’ का गठन किया है. वे अपने जन्मदिन 19 जून को दिल्ली जाकर नए संगठन के कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण कार्यक्रम में मार्गदर्शन करेंगे. यह संगठन भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करेगा. यहां उल्लेखनीय है कि अन्ना के आंदोलन में आरएसएस ने चुपचाप भीड़ जुटाई थी. अन्ना इसे अपना प्रभाव और लोकप्रियता मान बैठे थे. इसके बाद जब वे मुंबई में अनशन पर बैठे थे तो भीड़ नदारद थी. यदि संघ ने साथ दिया तो अन्ना की दिल्ली में हुंकार सफल होगी वरना नया आंदोलन कितना असरकारी रहेगा, कहा नहीं जा सकता.