
स्थानीय आबादी को खुश करने के इरादे से कुछ सरकारें नियम-कानून और संविधान को ताक पर रखकर मनमाना फैसला कर लेती हैं. जब उन्हें पता है कि संविधान (Constitution) में आरक्षण (Reservation) की सीमा अधिकतम 50 प्रतिशत है तो इससे अधिक का आरक्षण क्या सोचकर देती हैं? क्षेत्रीयतावाद अनेक राज्यों में जड़ जमा चुका है. इसके तहत भूमिपुत्रों या सन्स ऑफ सॉइल (Sons of soil) की ज्यादा फिक्र की जाती है.
हरियाणा की मनोहरलाल खट्टर के नेतृत्ववाली सरकार ने उद्योग-व्यापार क्षेत्र की राय लिए बगैर प्राइवेट नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया. ऐसा आरक्षण देते समय यह नहीं देखा गया कि जिन्हें नौकरी दी जा रही है वे कुशल और उपयोगी हैं भी या नहीं! हरियाणा राज्य स्थानीय व्यक्ति रोजगार अधिनियम 2020 को 15 जनवरी से लागू किया गया. यह कानून 10 वर्ष तक प्रभावी रहने की बात कही गई.
स्टार्ट अप उद्यमों को 2 वर्ष की छूट दी गई. औद्योगिक निकायों ने सरकार की इस नीति को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. कई याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि इस तरह का प्रावधान योग्यता को नजरअंदाज कर रिहायश के आधार पर निजी क्षेत्र में नौकरी को अवसर बढ़ा देगा. इसका निजी क्षेत्र की कार्यकुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को सही करार देते हुए इस कानून को सिरे से खारिज करते हुए इसे रद्द करने का आदेश दे दिया.
हाईकोर्ट के फैसले के बाद हरियाणा के महाधिवक्ता बलदेव राज महाजन ने कहा कि हम हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ शीघ्र ही सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करेंगे और कानून को बहाल करवाकर हरियाणा मूल के लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान लागू करेंगे. इस मामले को लेकर प्रश्न उठता है कि यदि सभी राज्य सरकारें क्षेत्रीय आधार पर नौकरियों में इतना बड़ा आरक्षण देने लगें तो राष्ट्रीयता की भावना का क्या होगा?
कोई भी काबिल आदमी दूसरे राज्य में नौकरी नहीं पा सकेगा. प्राइवेट नौकरी में कार्यकुशलता रखनेवाले लोगों की जरूरत पड़ती है. वे किस राज्य के निवासी हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता. निजी क्षेत्र पूंजी लगाकर जोखिम उठाकर काम करता है इसलिए उसे प्रशिक्षित व हुनरमंद लोगों की आवश्यकता होती है.
सरकार चाहे जिसे आरक्षण दे, लेकिन निजी क्षेत्र पर आरक्षण हरगिज नहीं लादा जाना चाहिए. वहां मेरिट आवश्यक होती है. स्थानीय लोगों को रोजगार देने के लिए उसे इतना मजबूर नहीं किया जाना चाहिए. यदि स्थानीय होने के नाम पर अयोग्य लोग आरक्षण पा गए तो निजी उद्योगों का कबाड़ा हो जाएगा.