हंगामे में पास हुए विधेयक तीसरे हफ्ते भी नहीं चल पाई संसद

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    भारत के संसदीय लोकतंत्र के सम्मुख गहन चुनौती है. एक ओर सरकार अपनी हठधर्मिता नहीं छोड़ रही तो दूसरी ओर विपक्ष लगातार गतिरोध बनाए हुए है. दोनों ओर से ताकत की आजमाइश हो रही है इसलिए भारी हंगामे की वजह से तीसरे सप्ताह भी संसद नहीं चली. मानसून सत्र यदि इस तरह बरबाद हो रहा है तो इसकी जिम्मेदारी आखिर किसकी है? पक्ष और विपक्ष दोनों में जनता के चुने हुए नुमाइंदे हैं लेकिन संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने का दायित्व बोध कहीं नजर नहीं आता. जिस तरह की तनातनी देखी जा रही है, वह हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली से कदापि सुसंगत नहीं है. विपक्ष का मानना है कि मोदी सरकार का रुख सामंजस्य का नहीं है.

    अपने बहुमत के बल पर वह विपक्षी दलों की मांग की अवहेलना करती है. हालत यह है कि पेगासस जासूसी कांड, कृषि कानून और महंगाई के मुद्दे पर गतिरोध बना हुआ है. विपक्ष हंगामा कर रहा है और सरकार इसी माहौल में अपनी मेजारिटी के दम पर आनन-फानन विधेयक पास करती चली जा रही है. विपक्ष ने संसद में बहस की बजाय हंगामे का रास्ता चुना. यह कौन सी रणनीति है? इससे क्या हासिल होगा? ज्वलंत प्रश्नों पर विपक्ष अपने पुष्ट तर्क सदन में रखे और सरकार को आड़े हाथ ले. जवाब में सरकार भी अपनी ओर से स्थिति स्पष्ट करे या कैफियत दे. संसदीय लोकतंत्र का यही स्वीकार्य व तर्कसंगत तरीका है. यह बात सही है कि सरकार भी संसदीय परंपराओं का पालन करने को लेकर गंभीर नहीं है.

    महत्वपूर्ण विधेयकों को मसौदा विचार के लिए संसदीय या प्रवर समिति के पास भेजने की प्रथा समाप्त सी हो गई. एकाधिकार वाली प्रवृत्ति बढ़ चली है. जब केंद्र ने 3 कृषि कानून बनाए तो उन्हें बगैर बहस के जल्दबाजी में पास कर दिया. विपक्ष 2 वर्ष पुराने पेगासस जासूसी मुद्दे को अब उछाल रहा है लेकिन सरकार उस पर चर्चा के लिए तैयार नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी का आरोप है कि विपक्ष स्वार्थपूर्ण राजनीति के लिए गतिरोध पैदा कर देश का विकास रोकने की कोशिश कर रहा है और संसद का अपमान किया जा रहा है. पीएम ने विपक्ष पर सेल्फ गोल करने का आरोप लगाया. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने भी नाराजगी जताई कि संसद की कार्यवाही टलने से करोड़ों रुपयों का नुकसान हो रहा है.