बिना परीक्षा दिए पास छात्रों की क्षमता पर उठेंगे सवाल

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    चाहे सीबीएसई हो या स्टेट बोर्ड, इस वर्ष उत्तीर्ण होनेवाले छात्रों की क्षमता पर सवाल जरूर उठेंगे. कोरोना संकट की वजह से स्कूलें बंद रहीं, ऑनलाइन पढ़ाई चली और परीक्षा कराना संभव नहीं हो पाया. परीक्षा हाल में जाकर इम्तिहान दिए बगैर छात्रों को उनके 10वीं व 11वीं के मार्क्स, स्कूल एसेसमेंट आदि के आधार पर 12वीं में पास कर दिया गया. इसी तरह 10वीं का रिजल्ट छात्रों के इंटरनल एसेसमेंट व साल भर में हुए अलग-अलग यूनिट टेस्ट के आधार पर तैयार किया गया. जब तक परंपरागत तरीके से परीक्षा होती थी तो कभी इतनी बड़ी तादाद में विद्यार्थी उत्तीर्ण नहीं होते थे. उसमें छात्रों की विषय की समझ, विश्लेषण क्षमता व याददाश्त का सही परीक्षण हो जाता था.

    पहले ज्यादा से ज्यादा 60-65 प्रतिशत विद्यार्थी पास होते थे लेकिन अब जिस प्रकार 99 प्रतिशत से अधिक छात्र पास हो गए हैं, उससे हर किसी को हैरत होना स्वाभाविक है. इतने बच्चों को एडमिशन कहां मिलेगा? 90 फीसदी से ज्यादा अंक लाने वालों की भी बहुत बड़ी तादाद है. क्या उन सभी को अपनी पसंद के कालेज या कोर्स मिल पाएंगे? कॉलेजों के लिए समस्या उत्पन्न हो जाएगी कि किसे दाखिला दे और किसे नहीं! छात्रों में प्रसन्नता का संचार होना स्वाभाविक है. बगैर परीक्षा दिए अच्छे नंबरों से पास हो जाना लॉटरी लगने के समान है.

    इस चक्कर में 60 प्रतिशत अंक पाने की क्षमता वाले छात्रों को भी 75 से 80 फीसदी नंबर मिल गए होंगे. नाराजगी उन मेरिट वाले छात्रों को होगी जो 10वीं बोर्ड में 95 प्रतिशत पाने के बाद 12वीं में भी वैसे ही नंबरों की उम्मीद कर रहे होंगे. एसेसमेंट वाले रिजल्ट में हर किसी की अपेक्षा पूरी नहीं हो सकती. इस वर्ष उत्तीर्ण होने वालों पर यही ठप्पा लग जाएगा कि वे कोरोना काल में बगैर परीक्षा दिए पास हो गए. इस नतीजे की विश्वसनीयता को लेकर प्रश्नचिन्ह बना रहेगा लेकिन इसके अलावा कोई विकल्प भी तो नहीं था.