सरकार का कड़ा कदम, कश्मीर में देशद्रोहियों पर नकेल कसी

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    देशवासी भली भांति जानते हैं कि संविधान का अनुच्छेद 370 रद्द किए जाने से पहले कश्मीर घाटी में कितनी अराजकता थी. वहां भारत विरोधी और पाकिस्तान परस्त ताकतें सक्रिय थीं. आए दिन उपद्रवियों की भीड़ सुरक्षा बलों पर पथराव करती थी. इनके पीछे अलगाववादी संगठनों का हाथ रहता था. आतंकवादियों के बचाव में बच्चों और महिलाओं की भीड़ को आगे कर उनसे पुलिस व फौज के जवानों पर पत्थर फिकवाए जाते थे. आल इंडिया हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं को पाकिस्तान से हवाला के जरिए मोटी रकम आती थी ताकि वे माहौल को अशांत बनाए रखें और भारत के खिलाफ लोगों के दिमाग में जहर घोलें. आतंकवाद के कारण कश्मीर में पर्यटन चौपट हो गया था.

    लंबी हड़ताल चलाकर विरोध प्रदर्शन किया जाता था. अलगाववादियों ने लोगों को पत्थरबाजी करने या बम फेंकने का रोजगार दे रखा था. सरकार ने नोटबंदी के अलावा हवाला पर नियंत्रण लगाया जिससे पाकिस्तान से आ रही रकम पर काफी हद तक नियंत्रण लगा. जब अलगाववादियों के वित्तीय स्रोत बंद हुए और दुष्प्रचार कर जनता को भड़काने वाले नेताओं को नजरबंद किया गया, तब हालात काबू में आए. इतना होने पर भी कुछ नेताओं का मिजाज नहीं बदला है. पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती अब भी कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान से बातचीत करने के लिए जोर दे रही हैं. इस समय जम्मू-कश्मीर सरकार ने पत्थरबाजों और देश विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने वाले लोगों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से एक नया आदेश जारी किया है. इसके तहत ऐसे लोगों को न तो सरकारी नौकरी दी जाएगी और न ही उनका पासपोर्ट बन पाएगा.

    इसके लिए सभी डिजिटल साक्ष्य और पुलिस रिकार्ड को ध्यान में रखा जाएगा. इस तरह सरकारी नौकरी में ऐसे अलगाववादी व उपद्रवी तत्वों की घुसपैठ नहीं हो पाएगी जो आतंकियों का साथ देते हैं और जिनकी देश के प्रति निष्ठा संदिग्ध है. सरकारी नौकरी के लिए संतोषजनक सीआईडी रिपोर्ट अनिवार्य कर दी गई है. सरकारी नौकरी या पासपोर्ट के लिए आवेदक को खुलासा करना अनिवार्य होगा कि उसके परिवार का कोई सदस्य या करीबी रिश्तेदार किसी राजनीतिक दल या प्रतिबंधित संगठन से जुड़ा तो नहीं है.