महात्मा गांधी जिन आदर्शों व सिद्धांतों को लेकर चले और उन्होंने जो विचार प्रतिपादित किए, उनका आज भी समूचे विश्व के लिए संदर्भ है. बापू को कालबाह्य अथवा गुजरे जमाने का पुरानी सोच वाला व्यक्ति मान लेना आत्म प्रवंचना होगी. उनकी दी हुई सीख अत्यंत महत्वपूर्ण थी जो भविष्य में भी आनेवाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करती रहेगी. बापू दकियानूस नहीं थे. उनके विचारों के पीछे पुष्ट तर्क रहा करता था. न केवल करोड़ों भारतवासी, बल्कि सारी दुनिया के लोगों को प्रभावित करनेवाला महात्मा गांधी का चिंतन कालजयी है. मोहनदास करमचंद गांधी को सबसे पहले शांतिनिकेतन में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘महात्मा’ कहकर संबोधित किया था. बापू की कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं था. आज हिंसा, स्वार्थ, भ्रष्टाचार, शोषण, अन्याय चरम पर है और मानवता कराह रही है. ऐेसे में लगता है कि आज बापू होते तो उनके जादुई व्यक्तित्व का भूले-भटके लोगों पर कुछ तो असर पड़ता.
उनके विचारों का पूरा विश्व कायल हुआ
महात्मा गांधी ने अपने नैतिक बल से अंग्रेज शासकों को झुकाया था. द. अफ्रीका में उन्हें जेल में डालने वाले जनरल स्मट्स के लिए गांधी ने खुद चप्पलें बनाकर भेंट की थीं. 2 सदियों की विदेशी गुलामी की जंजीरों से जकड़े भारत को बापू ने अहिंसा के मार्ग पर चलकर आजाद करवाया. यह विश्व इतिहास की अनूठी मिसाल थी. गांधी से प्रेरणा पाकर नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका को आजाद कराया. मार्टिन लूथर किंग ने अहिंसक आंदोलन कर अमेरिका में अश्वेतों को सिविल राइट्स दिलवाए. इसलिए गांधी के विचारों को देश या काल की परिधि में नहीं बांधा जा सकता. उस जमाने में बापू के पास न मोबाइल था, न वाट्सएप लेकिन उनके तब भी करोड़ों फालोअर थे. उनका एक संकेत समूचे देशवासियों को आंदोलित कर देता था.
राजनीति में स्वार्थ व भ्रष्टाचार
आज राजनीति जनसेवा का माध्यम न रहकर स्वार्थ की चाशनी में डूब गई है. नेता अवसरवादी हो गए हैं. आपराधिक रिकार्ड वाले व्यक्ति विधायक, सांसद और मंत्री बने नजर आते हैं. नेतागीरी का मतलब जनता को लूटकर करोड़ों की संपत्ति जमा करना हो गया है. चुनावी वादे सिर्फ जनता को ठगने के लिए होते हैं. यदि आज बापू होते तो क्या ऐसा चलने देते? बापू ने नारी शक्ति को हमेशा महत्व दिया. स्त्रियों के संबंध में उनके विचार पठनीय हैं लेकिन आजादी के 75 वर्ष होने पर भी देश की नारी असुक्षित है. क्या यह हमारे महान देश के लिए कलंक नहीं है? भ्रष्टाचार इतना अधिक बढ़ चुका है कि उसका कोई इलाज ही नहीं है. अधिकारियों और नेताओं को इसमें कुछ गलत ही नजर नहीं आता.
सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह पर जोर
आतंकवाद नए-नए रूप में सामने आ रहा है. चीन, पाकिस्तान और तालिबान इंसानियत के दुश्मन बने बैठे हैं. हथियारों की होड़ बढ़ती ही चली जा रही है. मौसम चक्र में बदलाव इस बात का संकेत है कि प्रकृति कुपित है क्योंकि मानव ने अपने स्वार्थ के लिए प्राकृतिक संसाधनों का मनमाना शोषण किया है. बापू सादा जीवन जीने और आवश्यकताएं सीमित रखने पर जोर देते थे ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे. सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह को उन्होंने जीवन में उतारा था और तब लोगों को इसके लिए प्रेरित किया था. बापू के अर्थशास्त्र में वर्ग संघर्ष नहीं था, बल्कि वे चाहते थे कि धनवान लोग अपनी संपत्ति के मालिक न होकर ट्रस्टी बनें और अपने अतिरिक्त धन से लोककल्याण करें. ट्रस्टीशिप का उनका सिद्धांत श्रमिकों और मालिकों में समन्वय करने वाला था. आज शिक्षा अत्यंत महंगी हो गई है. रोजगार की भी भीषण समस्या है. बापू ने बुनियादी तालीम, खादी और ग्राम स्वराज जैसे विचार रखे थे जिनमें इन समस्याओं का हल था. बापू के स्वदेशी संबंधी विचार आज भी संदर्भ रखते हैं. यदि स्वदेशी को अपनाया जाए तो देश का पैसा विदेश जाने से बच सकता है.
कांग्रेस तब और अब
महात्मा गांधी के समय कांग्रेस कार्यकारिणी विशेष महत्व रखती थी. नेताजी सुभाषचंद्र बोस के कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने पर भी कार्यकारिणी ने उन्हें सहयोग देने से इनकार कर दिया. तब बोस को इस्तीफा देना पड़ा था. आज कांग्रेस में न तो अध्यक्ष का निर्वाचन हो रहा है, न कार्यसमिति की भूमिका रह गई है. बापू के समय कांग्रेस देशभक्ति की प्रतीक थी और जन-जन की पहचान थी. राजनीतिक पार्टी के रूप में वह सत्ता की खींचतान में उलझ गई है. जब तक कांग्रेस परिवारवाद पर केंद्रित रहेगी, जन सामान्य तक कैसे पहुंचेगी? कार्यकर्ताओं की बुनियाद मजबूत हो, तभी पार्टी सशक्त होती है. आज भी कांग्रेस अपनी समस्याओं का हल महात्मा गांधी के विचारों में खोज सकती है. सिर्फ गांधी प्रतिमा या चित्र पर पुष्पहार चढ़ाना पर्याप्त नहीं है, उनके आदर्शों से भी प्रेरणा ली जाए तो कुछ बात बने!