इधर कोरोना का डर, उधर चुनाव रूपी लोकतंत्र का बूस्टर

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, हम सोचते हैं कि सेंटर जाकर बूस्टर शॉट ले लें ताकि हमारी कोरोना से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो जाए. हेल्थ वर्कर और सीनियर सिटिजन के लिए यह बूस्टर रक्षा कवच साबित हो सकता है. इसलिए पहले बूस्ट नामक एनर्जी ड्रिंक पी लेते हैं और फिर जोश के साथ कहते हैं- बूस्ट इज दि सीक्रेट आफ माय एनर्जी.’’ 

    हमने कहा, ‘‘बेशक, वैक्सीन लेने के पहले कुछ खा-पी लेना चाहिए. खाली पेट शॉट नहीं लेना चाहिए. इसके बाद मन ही मन ‘दो गज की दूरी मास्क है जरूरी’ का मंत्र जाप करते हुए सेंटर चले जाइए जहां आपकी बांह को फिर एक बार टोंच दिया जाएगा.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आप इलेक्शन को भी तो डेमोक्रेसी का वैक्सीन शॉट कह सकते हैं. इसे 5 राज्यों में लगाया जा रहा है. पूरा नेशन इस वैक्सीनेशन को कौतुहल से देखेगा. देखना होगा कि इससे किस पार्टी की इम्युनिटी बढ़ती है.’’ 

    हमने कहा, ‘‘चुनाव में इम्यूनिटी का नहीं बल्कि कम्यूनिटी देखी जाती है. फिल्म शोले में गब्बरसिंह ने पूछा था- कितने आदमी थे. चुनाव में पार्टियां देखती हैं कितने ब्राम्हण, ठाकुर, यादव, लोधी, कुर्मी, राजभर, दलित, अति पिछड़े व मुस्लिम हैं. ये सभी नेताओं की निगाह में वोटर समुदाय हैं. विश्व में भारत ही एकमात्र देश है जहां किसी भी चुनाव में जातिवाद का बूस्टर शॉट बड़े पैमाने पर लगाया जाता है. इसके अलावा भाषावाद, क्षेत्रीयतावाद की वैक्सीन भी सधे हुए हाथों से टोंची जाती हैं.’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, यूपी में सपा की लाल टोपी का भाजपा के भगवे से मुकाबला है. पंजाब में चन्नी और सिद्धू के बीच हिचकोले खा रही कांग्रेस को अमरिंदर-भाजपा के गठजोड़ से भिड़ना है. इनकी लड़ाई में ‘आप’ फायदा उठा सकती हैं. गोवा में कांग्रेस, बीजेपी, एनसीपी, शिवसेना और वहां की लोकल पार्टियां चुनावी कुंड में एकसाथ डुबकी लगाने को तैयार हैं. चुनाव फरवरी में है लेकिन अभी से सीटों की संभावना वाले पोल आने लगे. ऐसे ओपीनियम पोल को आप पार्टियों के लिए नैतिक बल बढ़ाने वाले या मॉरल बूस्टर कह सकते हैं.’’