मोदी बने प्रेरणा स्थान, राहुल-प्रियंका का भी धर्म पर ध्यान

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी बड़ी बहन प्रियंका गांधी रविदास मंदिर गए. उनकी धार्मिक-सांस्कृतिक अभिरुचि जाग उठी है. यह कितनी अच्छी बात है. अब तो उनकी देखादेखी अन्य कांग्रेसी नेता-कार्यकर्ता भी विभिन्न मंदिरों व धार्मिक स्थलों में जाने लगेंगे. पहले कांग्रेसजन खुद को सेक्यूलर या धर्मनिरपेक्ष बताते हुए मंदिर या धार्मिक आयोजनों में जाने से कतराते थे. घर में भले ही चुपचाप पूजापाठ या धार्मिक अनुष्ठान कर लें लेकिन मंदिर की चौखट नहीं लांघते थे. 

    उन्हें खुद को हिंदू कहने में शर्म आती थी. पिछले समय राहुल ने खुद को दत्तात्रेय गोत्र का जनेऊधारी ब्राम्हण बताया था. इस तरह के परिवर्तन की लहर कैसे आई? हमें वह समय भी याद है जब सोमनाथ मंदिर के निर्माण में सरदार वल्लभभाई पटेल व केएम मुंशी ने प्रमुख भूमिका निभाई थी. जब प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्रप्रसाद वहां गए थे और श्रद्धापूर्वक पंडितों के चरण धोए थे तो तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने इस बात पर अप्रसन्नता जाहिर की थी. नेहरू नहीं चाहते थे कि राष्ट्रपति सोमनाथ मंदिर जाएं.’’

    हमने कहा, ‘‘आप पुराना किस्सा मत सुनाइए. इंदिरा गांधी देश के विभिन्न मंदिरों में जाती थीं और रुद्राक्ष की माला पहनती थीं. इंदिरा के पोते-पोती भी यदि मंदिर जा रहे हैं तो अच्छी बात है.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कांग्रेस नेता यदि धर्म के प्रति रुचि दिखाने लगे हैं तो इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देना होगा. वे केदारनाथ का दर्शन करते हैं. वहां गुफा में जाकर ध्यान लगाते हैं. उन्होंने काशी विश्वनाथ कोरिडोर बनवाया. पीएम मोदी और यूपी के सीएम योगी ने भारतीय संस्कृति के प्रति आस्था जगाई है. 

    इसलिए कांग्रेस नेता भी समझ गए कि देश की जनता को क्या पसंद है. यही वजह है कि सिक्यूलरिज्म के नाम पर धर्म के प्रति उदासीनता दिखानेवाली कांग्रेस के नेता अब हिंदुत्व से जुड़ने लगे हैं. वैसे भी राम जन्मभूमि का ताला राजीव गांधी के पीएम रहते हुए ही खुला था. अल्पसंख्यकों का खोखला तुष्टिकरण करने वाले कांग्रेस नेता अब धर्म का पुष्टिकरण करने में लगे हैं.’’