nishanebaaz-The situation is thinner than Omicron, the leaders will still hold a big election rally

पार्टियों के पास है दौलत की थैली, जिससे होगी लाखों लोगों की चुनावी रैली!’’

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, इधर ओमिक्रॉन है तो  उधर 5 राज्यों के इलेक्शन की शान! चाहे हो संक्रमण की आपदा, नेताओं को बटोरना है वोटों की संपदा! भले ही जिंदगी की हो जाए ऐसी-तैसी लेकिन ज्यादा महत्वपूर्ण है डेमोक्रेसी! पार्टियों के पास है दौलत की थैली, जिससे होगी लाखों लोगों की चुनावी रैली!’’

    हमने कहा, ‘‘आप कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हैं? आपके ताव खाने से चुनाव नहीं रुकने वाले. मन में मत रखो डर, चुनाव है लोकतंत्र का समर, जिसके नेता हैं सेनानी जिन्होंने लड़ने की ठानी!’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, उन लोगों की चिंता कीजिए जो बसों और ट्रकों में भरकर चुनावी रैली में भीड़ करने के लिए लाए जाएंगे. उनमें से 25-30 को भी कोरोना हुआ तो सैकड़ों को फैलाएंगे. नेता ओमिक्रॉन की लहर भूलकर चुनावी लहर की फिक्र कर रहे हैं. भोले-भाले लोग 500 का नोट, फ्री ट्रांसपोर्ट मिलने से रैली में चले आते हैं. उस दिन मेहनत-मजदूरी की बजाय रैली में जाना पसंद करते हैं. नेताओं को भी भाड़े के टट्टू या किराए की भीड़ चाहिए. चुनावी सभा में भर जाए मैदान तो आती है जान में जान. फिर वे बघारते हैं अपना ज्ञान!’’

    हमने कहा, ‘‘कितना विरोधाभास है कि नेता कैबिनेट मीटिंग में मास्क लगाते हैं लेकिन रैली में अपना मुखड़ा दिखाने के लिए मास्क नहीं लगाते. जनता को पहचानना जरूरी है कि किस नेता की रैली है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, जब ऑनलाइन पढ़ाई हो सकती है और लैपटॉप पर वर्क फ्राम होम हो सकता है तो ऑनलाइन रैली क्यों नहीं हो सकती? मन की बात के समान रेडियो-टीवी पर अपनी बात कही जा सकती है. देश के करोड़ों लोगों के पास मोबाइल है. जिन दुर्गम स्थानों पर इंटरनेट की पहुंच नहीं है, वहां रिकार्ड किया गया संदेश पहुंचाया जा सकता है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, लोकतंत्र को भीड़तंत्र मानने वाले नेताओं को वर्चुअल नहीं, प्रत्यक्ष रैली करनी है. रैली की रेलमपेल उन्हें पसंद है. उनकी आन-बान के सामने कहां का ओमिक्रॉन!’’