नीतीश कुमार का चेहरा गुस्से से सुर्ख, भड़के तो कह डाला खुद को मूर्ख

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, जिस तरह खिसियानी बिल्ली खंभा नोचती है, वैसी ही हालत बिहार के सीएम नीतीश कुमार की हो गई है। विधानसभा में कार्यवाही के दौरान जब जीतनराम मांझी ने कहा कि जातीय जनगणना के आंकड़ों में गड़बड़ी है तो नीतीश आपा खो बैठे। उन्होंने भड़कते हुए कहा कि मेरी मूर्खता से ही मांझी मुख्यमंत्री बन गए थे। उनको कोई सेंस नहीं है और कोई आइडिया नहीं है। ’’

हमने कहा, ‘‘यदि नीतीश कुमार ने स्वयं अपनी मूर्खता को स्वीकार कर लिया तो इसमें हर्ज ही क्या है! इंसान अपनी गलतियां स्वीकार करने से छोटा नहीं हो जाता। पश्चिमी देशों में लोग चर्च के कन्फेशन बॉक्स में जाकर अपनी गलतियां और पाप स्वीकार कर लेते हैं।  इससे पुराना हिसाब डिलीट हो जाता है और नए गुनाह करने का खाता खुल जाता है। नीतीशकुमार पछता रहे हैं कि उन्होंने जीतनराम मांझी जैसे व्यक्ति को सीएम क्यों बनाया था, जबकि वह इस पद के लायक नहीं थे। ’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, गलतियां किससे नहीं होतीं? प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने कश्मीर प्रश्न को यूएन में ले जाकर उलझा दिया, जबकि यह मसला सरदार पटेल को सौंप दिया जाता तो वे इसे अपने तरीके से हल कर सकते थे। इसी तरह चीन पर भरोसा करके भी नेहरू धोखा खा गए। इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लागू कर मूलाधिकार स्थगित कर दिए थे और लोकतंत्र को सूली पर चढ़ा दिया था।  कांग्रेस के बाहरी समर्थन से प्रधानमंत्री बननेवाले चौधरी चरणसिंह और चंद्रशेखर ने यह नहीं सोचा था कि कुछ महीने बाद ही समर्थन वापस लेकर कांग्रेस उनकी सरकार गिरा देगी।  किसी नेता को भनक तक नहीं लगती कि उसकी पार्टी फूट रही है। महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी के साथ यही हुआ। राजनीति की शतरंज में जरा भी गफलत हुई तो मात खानी पड़ती है।  गलती हो या मूर्खता, उस पर बाद में पछताने से क्या फायदा! कालिदास भी पहले इतने मूर्ख थे कि वृक्ष की जिस डाल पर बैठे थे, उसे ही कुल्हाड़ी से काट रहे थे।  बाद में मां सरस्वती की कृपा से वे महाकवि बन गए और रघुवंश, मेघदूतम व अभिज्ञान शाकुंतल जैसी कृतियों की रचना कर डाली। ’’