पीछे छोड़ दिया राजनीति का झमेला, भेष बदल कर खट्टर घूम आए मेला

Loading

पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कहते हैं खलीफा हारूं-अल-रशीद अपनी प्रजा का हालचाल देखने के लिए भेष बदलकर सड़कों और बाजारों में घूमा करता था. हमें लगता है कि उस खलीफा का पुनर्जन्म हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के रूप में हुआ है. खट्टर ने चौकीदार का भेष बनाया और पंचकुला के सेक्टर 5 दशहरा ग्राउंड में आयोजित मेले में मजे से घूमते रहे. उन्होंने अपनी नियमित नेता की पोशाक की बजाय पैंट, शर्ट और जैकेट पहनी, सिर पर कैप लगाई और सुरक्षा घेरा तोड़कर मेला देखने जा पहुंचे. उन्होंने वहां पॉपकार्न भी खाया. आसपास के लोग पहचान ही नहीं पाए कि यह राज्य के सीएम हैं.’’

हमने कहा, ‘‘आप इसे खट्टर का एडवेंचर या मिसएडवेंचर कुछ भी कह सकते हैं. मंत्री, मुख्यमंत्री, पीएम और राष्ट्रपति प्राय: अपनी मर्जी से किसी गली-कूचे या मेले-ठेले में नहीं जा सकते. वे सिक्योरिटी के घेरे में कैद रहते हैं. वह अपने तय कार्यक्रम से बाहर नहीं जा सकते. किसके मिलना है और कितनी देर कहां रूकना है, यह सिक्योरिटी तय करती है. वह बाजार जाकर या फुटपाथ पर खरीदारी की सोच भी नहीं सकते. हो सकता है कि खट्टर ने ‘मेला’ नामक पुरानी फिल्म देखी हो और उनके मन में मेला घूमने की उमंग जाग उठी हो. उनके मन में गीत गूंजा होगा- ये जिंदगी के मेले दुनिया में कम न होंगे, अफसोस हम न होंगे.

इच्छाओं और कौतुहल के मामले में बच्चे-बूढ़े एक समान हुआ करते हैं. पानी पूरी, दही-भल्ला, पेटिस, चाट पकौड़ी खाने के लिए मेला बढि़या जगह है. ऊपर-नीचे जाते या गोल घूमते झूले, कई तरह के आकर्षक स्टाल मेले में रौनक पैदा कर देते हैं. कहीं जादू का खेल चलता है तो कहीं नकली हवाई जहाज में बैठकर फोटो खिंचवाई जा सकती है. मेले को उर्दू में नुमाइश और अंग्रेजी में एग्जिबिशन कहा जाता है. उत्तरप्रदेश में नौचंदी का मेला बहुत मशहूर है. कुंभ का मेला प्रयागराज, हरिद्वार, नाशिक और उज्जैन में लगा करता है. कुंभ में सबसे पहले नागा साधू शाही स्नान किया करते हैं.’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, इतिहास में भी मेले का जिक्र मिलता है. बादशाह अकबर विलासी था. वह मीना बाजार नामक मेला भरवाया करता था जिसमें महिलाएं वस्तुएं बेचा करती थीं. उस मेले में अकबर भेष बदलकर जाता था और जिस महिला को पसंद करता था, उसका अपहरण कर लिया जाता था. एक बार राजपूत हाड़ा रानी ने अकबर को पहचान लिया. वह बादशाह को जमीन पर पटक कर छाती पर सवार हो गई और उसे मारने के लिए कटार निकाल ली. अकबर बुरी तरह घबरा गया और उसने माफी मांग ली. रानी ने उसकी जान बख्श दी. इसके बाद से बादशाह ने मेला आयोजित करना बंद कर दिया.’’