पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, मंत्रियों का ‘ईगो’ या अभिमान जबरदस्त रहता है. वे मानकर चलते हैं कि देश की 130 करोड़ की आबादी का हर शख्स उन्हें पहचानता होगा. जब कोई बंदा यह पहचान न पाए तो मंत्री का पारा आसमान पर चढ़ जाता है. चेहरा गुस्से से लाल हो जाता है. मंत्री को लगता है कि कितना नादान है जो मुझे पहचान नहीं पा रहा है.’’
हमने कहा, ‘‘लोग सूर्य और चंद्रमा को तो पहचानते हैं लेकिन हर टिमटिमाने वाले तारे को क्यों और कैसे पहचानेंगे! कोई न भी पहचाने तो प्रेम से अपना परिचय देकर जान पहचान कर लेनी चाहिए.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, यह सही है कि मोदी मंत्रिमंडल के प्रत्येक राज्यमंत्री को हर कोई नहीं जानता. लोगों के लिए मोदी-शाह को पहचानना ही पर्याप्त है. मंत्री तो शतरंज के मोहरों की तरह बदलते रहते हैं. 2014 में जो मंत्री बने थे उनमें से कितने ही दोबारा 2019 में मंत्री नहीं बन पाए. फिर भी यह मामला केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से जुड़ा है.
स्मृति अपनी किताब, ‘लाल सलाम’ को प्रमोट करने कपिल शर्मा शो के सेट पर पहुंची थीं लेकिन वहां तैनात गार्ड ने उन्हें पहचानने से इनकार करते हुए अंदर जाने की अनुमति नहीं दी. उसने स्मृति को रोका लेकिन जोमैटो ब्वाय को भीतर जाने दिया. जब गार्ड को एहसास हुआ कि उसने जिन्हें रोका था वह केंद्रीय मंत्री थीं तो डर के मारे वहां से भाग खड़ा हुआ. समझो उसकी नौकरी तो गई.’’
हमने कहा, ‘‘स्मृति ईरानी को चाहिए था उस गार्ड को बताती कि मैं वही हूं जिसने राहुल गांधी को अमेठी में हराया था. मैं एकता कपूर के सीरियल ‘क्यूंकि सास भी कभी बहू थीं’ की तुलसी बहू थी. 7 वर्ष तक टीवी पर वह लोकप्रिय सीरियल चला और फिर भी तुमने मुझे नहीं पहचान रहे हो. मैं छोटे परदे से निकलकर, सिनेमास्कोप राष्ट्रीय राजनीति में छा गई. वे फिल्म डॉन के गीत की धुन सुनाते हुए कह सकती थीं, ओ दीवानो मुझे पहचानो, कहां से आई कौन हूं मैं, मैं हूं केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी.