कुछ लोग होते हैं बेशर्म और ढीठ, मतलब निकलने पर फेर लेते पीठ

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कभी-कभी किसी लोकप्रिय नेता के सितारे गर्दिश में आ जाते हैं. उसे चाहनेवाले उसकी ओर से पीठ फेर लेते हैं.’’ हमने कहा, ‘‘कोई मुंह फेरे या पीठ फेरे, आपको क्या लेना-देना. इस दुनिया में हेराफेरी चलती ही रहती है. कभी कोई मतलब के लिए मुखातिब रहता है तो कभी देखते ही मुंह फेर लेता है.’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हम मुंह की नहीं, पीठ की बात कर रहे हैं. आम जनता अपनी पीठ पर बढ़ती महंगाई का बोझ उठाती है. सामान्य व्यक्ति की पीठ में रीढ़ की हड्डी मौजूद होती है परंतु कुछ नेता इसके अपवाद होते हैं. ऐसे बिना रीढ़ के नेता इस पार्टी से उस पार्टी में उछल-कूद करते हैं. वे कभी सांप्रदायिकता के पोषक रहते हैं तो कभी गिरगिट के समान रंग बदलकर धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा पहनना चाहते हैं. यह सब वे अपने मतलब के लिए करते हैं. वे जनता को मूर्ख समझते हैं लेकिन ये पब्लिक है, सब जानती है. वह समझ जाती है कि कौआ चला हँस की चाल!’’ 

    हमने कहा, ‘‘पीठ को बैक कहते हैं. हर उद्योगपति बिजनेस करते समय अपना बैक-अप प्लान तैयार रखता है कि धंधा मंदा हुआ तो क्या करेगा! अदालत में पूर्ण पीठ, खंडपीठ और संवैधानिक पीठ हुआ करती है. किसी शातिर अपराधी की पीठ पर नेता का हाथ होता है. इलेक्शन जीतने के लिए दबंग क्रिमिनल का कनेक्शन काम आता है. गरीब का पेट हमेशा उसकी पीठ से लगा रहता है. बहादुर लोग दुश्मन को पीठ नहीं दिखाते. विश्वासघाती हमेशा पीठ में छुरा घोंपता है. कुछ लोगों की पीठ काफी मजबूत होती है. उन्हें पहचान कर लोग उन पर गधे जैसा बोझ लाद देते हैं. 

    जिनकी रीढ़ में दम नहीं होता, वे अपनी कमजोर पीठ की दुहाई देकर कामचोरी करते हैं. इंसान के लिए सबसे कठिन काम नहाते समय अपनी पीठ पर साबुन लगाना होता है. लोग व्यासपीठ पर खड़े होकर ऐसा भाषण देते हैं जो ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ होता है. वे जो बात खुद पर लागू नहीं करते, वह दूसरों को सिखाते हैं. प्रोत्साहन या शाबासी देने के लिए पीठ पर हाथ फेरा जाता है.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज पीठ को लेकर काफी चर्चा हो गई. अब हम भी पीठ फिराकर यहां से खिसकते हैं.’’