छूट मिलते ही तामझाम, मैयत में दुआ-सलाम, शादियों में भी राम-राम

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कोरोना की तीसरी लहर कमजोर होते ही बंदिशों में रियायत या छूट दे दी गई. अब लोग खुश होकर कहने लगे हैं- दिल में एक लहर सी उठी है अभी, कोई ताजा हवा चली है अभी! अब लोग लोकल फॉर वोकल होकर पूरी तरह सोशल होने लगे हैं. वे निस्संकोच मिल रहे हैं. बंगलुरू में हिजाब को लेकर विवाद होगा लेकिन अपने शहर में नकाब या मास्क नाक-मुंह से नीचे सरक कर गले में लटकने लगे हैं.’’ 

    हमने कहा, ‘‘आपने लोगों के बेफिक्र मिलने-जुलने का जिक्र किया तो हम बता दें कि लोग शादी-ब्याह से लेकर अंतिम संस्कार तक हर जगह परिचितों व मित्रों से बेतकल्लुफी से मिल रहे हैं और खुलकर गपशप कर रहे हैं. आखिर इंसान सामाजिक प्राणी है जो मेलजोल के बगैर रह नहीं सकता. जब कहीं कोई पुराना मित्र मिल जाए तो बड़ा याराना लगता है. पहले जिस तरह महिलाएं पनघट पर मिला करती थीं, वैसे ही लोग अब मरघट पर मिलने लगे हैं. 

    उनके चेहरे पर मरने वाले के लिए कोई दुख नहीं झलकता. वे अपनी शक्ल दिखाने के लिए वहां आ जाते हैं. जिन्हें भाषण देने का शौक है, वे घूम-घूमकर लोगों से आग्रह करते हैं कि चलिए शोकसभा कर लेते हैं. फिर उपस्थित लोगों के बीच किसी बुजुर्ग को अध्यक्ष बनाकर बोलना शुरू कर देते हैं. मृतक से अपने अत्यंत घनिष्ट संबंधों का बखान कर उसके अज्ञात गुणों का झूठा-सच्चा उल्लेख करते हैं. 

    महामारी कमजोर हुई तो शोकसभा का जोश फिर से आ गया. जो लोकसभा में न जा पाए, वह शोकसभा में ही तसल्ली कर लेता है. कुछ तो मैयत में मुलाकात होने पर वहीं शादी-ब्याह जोड़ने की प्रारंभिक बातचीत करने में कोई संकोच नहीं करते. मरनेवाला तो गया लेकिन बाकी लोगों के लिए तो जिदंगी और रिश्ते-नातों का सिलसिला बाकी है. लोक व्यवहार किसी के जाने से नहीं रुकता. पगड़ी रस्म भी इसीलिए होती है कि बेटा अब शोक छोड़, सीधे अपने कर्तव्य या दुनियादारी में लग जा!’’