पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, गुजरात विधानसभा में इस बार सिर्फ बीजेपी और कांग्रेस की सीधी टक्कर नहीं है. वहां आप (आम आदमी पार्टी) भी कूद पड़ी है. इसलिए त्रिकोणी मुकाबला है. केजरीवाल जहां जाते हैं, वहां खड़ताल बजा देते हैं. दिल्ली के बाद पंजाब फतह किया और अब हिमाचल से लेकर गुजरात तक पैर फैलाना चाहते हैं. इस महत्वाकांक्षी नेता में धैर्य नाम की कोई चीज नहीं है. वे कभी नहीं सोचते कि बहुत दिया देनेवाले ने तुझको, आंचल में न समाय तो क्या कीजे! केजरीवाल को अपने कदम आगे बढ़ाने के पहले सोचना चाहिए कि चित्त में समाधान रहना बहुत जरूरी है. इसीलिए कहा गया है- गोधन, गजधन, बाजीधन और रतनधन खान, जब आए संतोषधन, सबधन धूरि समान!’’
हमने कहा, ‘‘राजनीति में कोई व्यक्ति अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं होता. केजरीवाल का अरमान तो देश का प्रधानमंत्री बनने का है. आरोप है कि वे रेवडि़यां बांटकर अपनी राजनीति की कड़ियां जोड़ते हैं. यदि गुजरात की जनता उनसे पूछे कि आप यहां आए किसलिए तो उनका जवाब होगा आपने बुलाया इसलिए! वे गुजरात वासियों से यह भी कह सकते हैं- आप की नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे, दिल की ऐ धड़कन ठहर जा, मिल गई मंजिल मुझे.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, केजरीवाल किसी भी राज्य में एंट्री मार देते हैं और लुभावने वादों से ‘आप’ की चुनावी संभावनाओं को टटोलते हैं. उन्हें उनके गुरू अन्ना हजारे पुराने दिनों की याद दिलाते हुए कह सकते हैं- आप तो ऐसे न थे. ‘आप’ नेता केजरीवाल यदि लखनऊ का कल्चर सीखतो तो उन्हें पता चलता कि ट्रेन के डिब्बे में चढ़ने से पहले वहां के 2 नवाब एक दूसरे आग्रह करते रहे- पहले आप- पहले आप! इस चक्कर में गाड़ी छूट गई और तहजीब के फेर में फंसकर दोनों प्लेटफार्म पर खड़े रह गए.’’
हमने कहा, ‘‘इस बारे में बेफिक्र रहिए. केजरीवाल मान न मान, मैं तेरा मेहमान की तर्ज पर हर जगह घुस कर अपना प्लेटफार्म बना लेते हैं और इलेक्शन बोगी की बर्थ पर फौरन कब्जा कर लेते हैं. सवाल यह नहीं है कि गुजरात में आप किसका खेल बिगाडेगी. बीजेपी को नुकसान पहुंचाएगी या कांग्रेस के वोट काटेगी! दिल्ली की जनता केजरीवाल से यही कहेगी- जाइए आप कहां जाएंगे, ये नजर लौट के फिर आएगी!’’